1985 Shah Bano Case क्या मुस्लिम महिलाओं के लिए इतिहास रचाया था
1985 Shah Bano Case भारतीय न्यायपालिका के इतिहास का एक मील का पत्थर था, जिसने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों और समानता की बहस को नए स्तर पर पहुँचा दिया। शाह बानो केस पर आधारित फिल्म ‘HAQ’ – यामी गौतम और इमरान हाशमी पहली बार साथ, सामने आया दमदार टीज़र
सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक शाह बानो केस पर आधारित दमदार ड्रामा फिल्म ‘HAQ’ का टीज़र रिलीज़ कर दिया गया है। जंगली पिक्चर्स, इनसोम्निया फिल्म्स और बावेजा स्टूडियोज के बैनर तले बनी इस फिल्म में यामी गौतम धर और इमरान हाशमी मुख्य भूमिकाओं में नज़र आएंगे। फिल्म का निर्देशन सुपर्ण एस वर्मा ने किया है और यह 7 नवंबर 2025 को सिनेमाघरों में रिलीज होगी।
1985 Shah Bano Case कहानी और प्रेरणा
यह फिल्म जिग्ना वोरा की किताब “बानो: भारत की बेटी” पर आधारित है। इसमें शाह बानो बेगम की चार दशक लंबी लड़ाई और सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को नाटकीय रूप में दिखाया गया है। फिल्म पर्सनल लॉ बनाम सेक्युलर लॉ और समान नागरिक संहिता (UCC) जैसे अहम सवालों को उठाती है। कहानी इस सवाल को भी छूती है – क्या न्याय सभी के लिए समान होना चाहिए? क्या अब एक राष्ट्र, एक कानून का समय आ गया है?
किरदार
यामी गौतम धर: एक साहसी मुस्लिम महिला का किरदार, जो अपने बच्चों और खुद के हक़ के लिए CrPC धारा 125 के तहत अदालत में लड़ती है। इमरान हाशमी: एक संवेदनशील और तेज-तर्रार वकील की भूमिका में, जो अदालत में शाह बानो की लड़ाई का हिस्सा बनते हैं।
खास बातें
फिल्म एक प्रेम कहानी से शुरू होती है, लेकिन पति-पत्नी का निजी विवाद धीरे-धीरे एक राष्ट्रीय बहस बन जाता है। यह एक सशक्त कोर्टरूम ड्रामा है, जो आस्था, पहचान, व्यक्तिगत विश्वास और नीति-कानून के टकराव को सामने लाता है। जंगली पिक्चर्स की यह फिल्म ‘राज़ी’, ‘तलवार’ और ‘बधाई दो’ जैसी सामाजिक और सशक्त कहानियों की परंपरा को आगे बढ़ाती है।
यामी गौतम के लिए खास
‘HAQ’ फिल्म यामी गौतम के लिए उनके हालिया सफल प्रोजेक्ट ‘आर्टिकल 370’ के बाद एक और बड़ा कदम है। इस बार वह एक ऐसी महिला के रूप में सामने आएंगी जो अन्याय के सामने झुकने से इंकार करती है।
1985 Shah Bano Case केस क्या था?
शाह बानो बेगम मध्यप्रदेश की रहने वाली 62 वर्षीय मुस्लिम महिला थीं। उनके पति, मोहम्मद अहमद खान (वकील) ने 43 साल की शादी के बाद उन्हें तलाक दे दिया। तलाक के बाद शाह बानो ने अपने और बच्चों के भरण-पोषण (maintenance) के लिए क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (CrPC) की धारा 125 के तहत कोर्ट में याचिका लगाई। हालाकि उनकी शादी बचपन में ही हो गई थी।
अप्रैल 1978 में, 62 वर्षीय मुस्लिम महिला शाह बानो बेगम ने तीन तलाक के बाद सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण/गुजारा भत्ता के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की। उनके पति मोहम्मद अहमद खान ने इसका विरोध किया और मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार केवल ‘इद्दत’ अवधि (90 दिन) के दौरान ही भरण-पोषण दिए जाने की आवश्यकता का हवाला दिया। यह कानूनी लड़ाई सात साल तक चली और अप्रैल 1985 में सर्वोच्च न्यायालय ने शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया।
1985 Shah Bano Case सुप्रीम कोर्ट का फैसला (1985)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि CrPC 125 सभी धर्मों पर लागू होता है, और तलाकशुदा महिला (चाहे किसी भी धर्म की हो) को भरण-पोषण का हक है। कोर्ट ने आदेश दिया कि शाह बानो को उनके पति से भरण-पोषण मिले। यह फैसला मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ माना गया क्योंकि उसमें कहा जाता था कि तलाक के बाद केवल इद्दत (लगभग 3 महीने) की अवधि तक ही महिला को गुजारा भत्ता मिलता है।
विवाद और राजनीतिक घटनाक्रम
फैसले के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कट्टरपंथी वर्ग ने विरोध किया, कहा कि यह धर्म में हस्तक्षेप है। राजनीतिक दबाव के चलते, 1986 में राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 पास किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सीमित कर दिया गया। इस कानून के तहत तलाकशुदा मुस्लिम महिला का गुजारा भत्ता केवल इद्दत की अवधि तक सीमित कर दिया गया।
क्यों कहा जाता है “इतिहास रचाने वाला केस”?
पहली बार किसी मुस्लिम महिला ने सार्वजनिक रूप से न्याय के लिए लड़ाई लड़ी और उसे सर्वोच्च न्यायालय से अधिकार मिला। इसने महिला अधिकार, धर्मनिरपेक्षता और पर्सनल लॉ बनाम समान नागरिक संहिता (UCC) पर राष्ट्रीय बहस छेड़ी। शाह बानो केस से ही आगे चलकर त्रिपल तलाक पर आंदोलन और अंततः 2019 में ट्रिपल तलाक कानून बनने का रास्ता तैयार हुआ।
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