2 October

2 October गांधी जयंती और दशहरा एक साथ: संयोग या संकेत?

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2 October गांधी जयंती और दशहरा एक साथ: संयोग या संकेत?

2 October इस साल 2 अक्टूबर को दो बड़े पर्व एक साथ पड़े – महात्मा गांधी जयंती और दशहरा
गांधी जी, जिन्होंने अंग्रेज़ों जैसे “रावण” से लड़कर आज़ादी दिलाई, और भगवान राम, जिन्होंने असली रावण का वध किया – दोनों ही विजय और सत्य के प्रतीक हैं।

लेकिन इस बार चर्चा का केंद्र कुछ और है। सोशल मीडिया पर कई जगह रावण की “ब्राह्मण पहचान” को लेकर बहस हो रही है। कुछ लोग कह रहे हैं कि रावण ब्राह्मण था, इसलिए ब्राह्मणों को उसके पुतले का दहन नहीं करना चाहिए। सवाल उठता है – क्या अब ब्राह्मणों की पहचान रावण से जोड़ी जाएगी?

राम बनाम रावण की बहस क्यों?

  • भारतीय परंपरा में रावण को कभी नायक या पंडितों का प्रतीक नहीं माना गया। हां, उसकी विद्या और तपस्या की तारीफ ज़रूर की गई, लेकिन वह नायक नहीं, बल्कि अहंकार और अत्याचार का प्रतीक रहा। पुराने समय में “ब्राह्मण अवध्य” माने जाते थे क्योंकि ज्ञान उनके पास था। उन्हें मारना मानो पूरी “लाइब्रेरी” को खत्म करना था। इसी कारण रावण वध के बाद कुछ ब्राह्मणों ने राम के यज्ञ का बहिष्कार किया, लेकिन पूजा रावण की नहीं की।

आज सोशल मीडिया की पोस्ट्स इस बहस को नया मोड़ दे रही हैं, और नई पीढ़ी के लिए भ्रम खड़ा कर रही हैं।

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राम की कथा – त्याग और धर्म का प्रतीक

तुलसीदास ने राम को त्याग और मर्यादा का प्रतीक बताया।

  • पिता का राजपाट छोड़कर वनवास जाना। आलीशान जीवन छोड़कर साधारण जीवन अपनाना। भाई और पत्नी संग धर्म के लिए संघर्ष करना। राम की यही छवि गांधी जी को प्रिय थी। बापू ने भी अंग्रेज़ों से लड़ाई तलवार से नहीं, बल्कि अहिंसा और त्याग से लड़ी।

रावण की छवि – शक्ति और पराधीनता का प्रतीक

तुलसीदास के शब्दों में रावण:
“अपनी भुजाओं के बल पर पूरी दुनिया को वश में कर लिया, किसी को स्वतंत्र नहीं रहने दिया।”

यानी रावण ताकतवर था, लेकिन स्वतंत्रता और न्याय का दुश्मन। यही वह बात है जो उसे कभी आदर्श नहीं बनने देती।

2 October “राम और गांधी… दो चेहरे, एक ही संदेश – धर्म, सत्य और स्वतंत्रता।”

गांधी और राम – स्वतंत्रता के प्रतीक

राम ने मर्यादा और धर्म की रक्षा के लिए त्याग किया।
गांधी ने स्वतंत्रता और सत्य की लड़ाई के लिए सबकुछ त्याग दिया।
दोनों का लक्ष्य एक ही था – “सुतंत्रता” यानी स्वतंत्रता।

सवाल हमारे सामने

अब हमें तय करना है –

  • क्या हम त्याग और सत्य की राह पर चलने वाले राम और गांधी को आदर्श मानेंगे?
  • या फिर केवल जातिगत तर्कों में उलझकर रावण को ब्राह्मण कहकर पूजनीय बनाने की कोशिश करेंगे?

गांधी जयंती और दशहरा का एक साथ आना एक संकेत है कि हमें राम और गांधी – दोनों की राह याद रखनी चाहिए।
ये राह है – त्याग, सत्य और स्वतंत्रता की।



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