29 April 1946: जब गांधी, नेहरू और सरदार पटेल के बीच तय हुई भारत की आज़ादी की राह — कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर हुआ ऐतिहासिक मोड़
29 April 1946 का दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक अहम मोड़ था, जब सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी के बीच देश के भविष्य को लेकर एक निर्णायक चर्चा और राजनीतिक घटनाएँ हुईं। 29 अप्रैल 1946 — वह दिन जब सरदार पटेल कांग्रेस अध्यक्ष बनने के सबसे क़रीब थे, पर महात्मा गांधी के एक संकेत पर नेहरू को मिला नेतृत्व। यह फैसला भारत की स्वतंत्रता की दिशा तय करने वाला साबित हुआ।
29 April 1946 को कांग्रेस अध्यक्ष पद पर सरदार पटेल की जगह नेहरू के चयन ने भारत की आज़ादी की दिशा बदली। जानिए क्या हुआ था उस ऐतिहासिक दिन।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम की यात्रा में 29 अप्रैल 1946 एक ऐसा दिन है, जिसने देश की आज़ादी और विभाजन — दोनों की कहानी को दिशा दी। इस दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर एक बड़ा निर्णय लिया गया था — कौन बनेगा स्वतंत्र भारत का नेतृत्व करने वाला?
यह वही समय था जब ब्रिटिश सरकार ने भारत में सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया शुरू की थी, और कांग्रेस के नेतृत्व को देश का भविष्य तय करना था।
29 April 1946 कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव: गांधी का निर्णायक संकेत
1946 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई। यह वही पद था, जिसे धारण करने वाला व्यक्ति भविष्य में भारत का पहला प्रधानमंत्री बनने वाला था, क्योंकि ब्रिटिश सरकार अंतरिम सरकार का गठन करने जा रही थी।
उस समय 15 प्रांतीय कांग्रेस समितियों ने अपने-अपने उम्मीदवारों के नाम भेजे।
इनमें से 12 समितियों ने सरदार वल्लभभाई पटेल का नाम प्रस्तावित किया,
जबकि जवाहरलाल नेहरू का नाम किसी एक भी प्रांतीय समिति ने नहीं भेजा।
लेकिन कांग्रेस की परंपरा के अनुसार, अंतिम निर्णय महात्मा गांधी के सुझाव पर निर्भर करता था। गांधीजी ने नेहरू को बुलाया और उनसे पूछा कि क्या वे कांग्रेस अध्यक्ष बनना चाहेंगे। नेहरू ने साफ कहा कि वे केवल तभी काम करेंगे जब वे अध्यक्ष होंगे।
गांधीजी जानते थे कि नेहरू का व्यक्तित्व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावशाली है, और वे ब्रिटिश नेताओं के साथ बातचीत में उपयोगी साबित होंगे। इसलिए, उन्होंने पटेल से कहा कि वे “नेहरू के लिए जगह छोड़ दें” — और सरदार पटेल ने बिना किसी विरोध के गांधीजी की इच्छा का सम्मान किया।
29 April 1946 परिणाम: देश की दिशा तय करने वाला फैसला
29 अप्रैल 1946 को आधिकारिक तौर पर नेहरू कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए, और सरदार पटेल ने अपने नामांकन वापस ले लिया। यह घटना केवल पार्टी का आंतरिक मामला नहीं थी, बल्कि भारत के भविष्य को निर्धारित करने वाला क्षण था।
अगर उस दिन पटेल अध्यक्ष बनते, तो संभव है कि देश का राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचा कुछ अलग होता। पटेल का दृष्टिकोण व्यावहारिक और निर्णायक था, जबकि नेहरू का दृष्टिकोण अधिक आदर्शवादी और समाजवादी झुकाव वाला था।
इतिहासकारों का मानना है कि इस एक निर्णय ने आने वाले वर्षों में भारत की नीति, विभाजन की प्रक्रिया, और नेहरू-गांधी युग की राजनीतिक नींव रख दी।
गांधी, नेहरू और पटेल: मतभेद नहीं, दृष्टिकोण का अंतर
गांधीजी, नेहरू और पटेल — तीनों भारत की स्वतंत्रता के तीन स्तंभ थे। उनके विचार भिन्न थे, लेकिन उद्देश्य एक था — स्वतंत्र और एकजुट भारत।
पटेल ने कभी भी इस निर्णय पर सार्वजनिक आपत्ति नहीं की, बल्कि नेहरू के नेतृत्व में काम किया और बाद में गृह मंत्री बनकर देश की रियासतों को एकसूत्र में पिरोने का महान कार्य किया।
29 अप्रैल 1946 का यह दिन केवल राजनीतिक तिथि नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक मोड़ था —
जिसने तय किया कि भारत का पहला प्रधानमंत्री कौन होगा,
और स्वतंत्र भारत का भविष्य किस दिशा में आगे बढ़ेगा।
सरदार पटेल का त्याग, नेहरू का नेतृत्व और गांधीजी की दूरदर्शिता — इन तीनों के संतुलन ने भारत को आज़ादी की ओर अग्रसर किया।
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