Gen-Z क्यों है सोशल मीडिया का दीवाना?
Gen-Z नेपाल: सोशल मीडिया बैन बना बवाल की वजह
Gen-Z नेपाल में पिछले कुछ दिनों से हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। वजह है सरकार द्वारा सोशल मीडिया एप्स पर लगाया गया बैन। इस फैसले ने खासकर Gen-Z युवाओं को भड़का दिया, और नतीजा यह हुआ कि देशभर में तोड़फोड़, आगजनी और हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए। स्थिति बिगड़ते देख सेना को मोर्चा संभालना पड़ा और फिलहाल अगले 48 घंटे के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया है।
डराने वाले साइड इफेक्ट्स (Experts के अनुसार)
- मानसिक स्वास्थ्य पर असर:
- लगातार ऑनलाइन रहने से चिंता, तनाव और डिप्रेशन बढ़ता है।
- तुलना (Comparison) की आदत आत्मसम्मान को कमजोर करती है।
- नींद की समस्या:
- रातभर स्क्रॉलिंग से नींद का चक्र बिगड़ जाता है।
- लत (Addiction):
- नोटिफिकेशन और रील्स देखने की आदत मस्तिष्क में डोपामिन हिट देती है, जो नशे जैसी लत पैदा करती है।
- फ़ेक न्यूज़ और ट्रेंड प्रेशर:
- गलत जानकारी, खतरनाक चैलेंज और अवास्तविक ट्रेंड्स युवा मानसिकता को प्रभावित करते हैं।
- रियल-लाइफ़ से दूरी:
- परिवार और दोस्तों के साथ बातचीत घटने लगती है।
- वर्चुअल दुनिया असली रिश्तों पर हावी हो जाती है।
Gen-Z और सोशल मीडिया का जुनून
विशेषज्ञों का मानना है कि Gen-Z की जिंदगी का बड़ा हिस्सा सोशल मीडिया से जुड़ा हुआ है।
वे इसे अपनी पहचान और जुड़ाव का जरिया मानते हैं। लाइक्स, कमेंट्स और शेयर उन्हें डोपामाइन बूस्ट देते हैं, जो धीरे-धीरे लत बन जाता है। असल जिंदगी में कमी होती बातचीत और लगातार तुलना की आदत उन्हें और ज्यादा सोशल मीडिया पर खींच ले जाती है।
“डिजिटल जुनून या खतरनाक लत? Gen-Z की सोशल मीडिया दीवानगी पर एक्सपर्ट की राय”
नकारात्मक असर
हालांकि यह डिजिटल जुड़ाव अक्सर नुकसान भी पहुंचाता है:
- अकेलापन और डिप्रेशन
- एंग्जायटी और असंतोष
- खराब नींद और डाइट
- बॉडी इमेज से जुड़ी समस्याएं
- साइबरबुलिंग और सोशल आइसोलेशन

Gen-Z क्यों है सोशल मीडिया का दीवाना?
- डिजिटल नेटिव पीढ़ी:
- Gen-Z जन्म से ही इंटरनेट और स्मार्टफोन के साथ बड़ी हुई है।
- इनके लिए सोशल मीडिया सिर्फ एक प्लेटफ़ॉर्म नहीं बल्कि पहचान और जुड़ाव का जरिया है।
- एक्सप्रेशन और कनेक्शन:
- वीडियो, मीम्स और पोस्ट्स के जरिए अपनी राय तुरंत दुनिया तक पहुँचाना।
- दोस्तों, इन्फ्लुएंसर्स और ग्लोबल ट्रेंड्स से जुड़े रहना।
- मान्यता (Validation) की चाह:
- लाइक्स, कमेंट्स और फॉलोअर्स इन्हें आत्मविश्वास और अपनापन का एहसास कराते हैं।
- करियर और क्रिएटिविटी:
- बहुत से युवाओं के लिए यह कमाई और अवसर का साधन भी है – यूट्यूब, इंस्टाग्राम, टिकटॉक आदि।
मानसिक स्वास्थ्य पर चोट
सोशल मीडिया पर दूसरों की लाइफस्टाइल देखकर तुलना करने की आदत से आत्मसम्मान में गिरावट, आत्मघृणा, और हीन भावना पैदा होती है। यहीं से शुरुआत होती है डिप्रेशन, एंग्जायटी और कभी-कभी आत्मघाती विचारों की।
पेरेंट्स क्या करें?
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार माता-पिता को चाहिए कि वे:
बच्चों से उनके ऑनलाइन अनुभवों पर खुलकर बातचीत करें। स्क्रीन-फ्री टाइम और वैकल्पिक एक्टिविटीज बनाएं। सोशल मीडिया के खतरों और साइबर सेफ्टी के बारे में जागरूक करें।
कितना है सही स्क्रीन टाइम?
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, रोज़ाना 40–45 मिनट सोशल मीडिया के लिए पर्याप्त है। घंटों बिताने वाले युवाओं को इसे धीरे-धीरे कम करने की कोशिश करनी चाहिए।
यह सिर्फ नेपाल की कहानी नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक चेतावनी है कि सोशल मीडिया का संतुलित इस्तेमाल जरूरी है, वरना इसका नशा समाज को हिला सकता है।
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Nepal to France जनता बनाम सरकार की नीतियाँ, सड़कों पर उफान!
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