Churachandpur कैडर की ताक़त ही संगठन की असली पहचान
Churachandpur : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जीवन और उनका संगठनात्मक दृष्टिकोण हमेशा से कैडरों के समर्पण और अनुशासन पर आधारित रहा है।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि किसी भी संगठन की असली ताक़त उसके ढांचे में नहीं, बल्कि उसके कैडरों की क्षमता, अनुशासन और समर्पण में होती है। यही विचार उनके जीवन का मार्गदर्शक मंत्र रहा है।
साल 1970 के शुरुआती दशक में नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रचारक बने। आपातकाल के बाद, 1977 में जब वे विभाग प्रचारक बने, तब उनका कार्यशैली कैडर निर्माण पर केंद्रित थी। उस समय गुजरात में संघ का सीमित प्रसार था। लेकिन मोदी का विज़न स्पष्ट था — “हर गाँव में शाखा होनी चाहिए।” वे हर शाखा का बारीकी से मूल्यांकन करते, गतिविधियाँ देखते, अनुपस्थित लोगों के कारण तक जानते।
1985 में संघ के 60 वर्ष पूर्ण होने पर अहमदाबाद में एक विशाल शिविर का आयोजन हुआ, जिसमें 5,000 कैडर शामिल हुए। मोदी गाँव-गाँव जाकर युवाओं को प्रेरित करते, उन्हें गणवेश दिलवाते और संघ से स्थायी रूप से जोड़ते। इसने गुजरात इकाई में नई ऊर्जा भर दी।
राजकोट के पी.डी. मालवीय कॉलेज में प्रशिक्षण शिविर में उन्होंने कैडरों से स्थानीय सर्वे करवाया और सांख्यिकीय तरीकों से उसका विश्लेषण कराया। यह उनके आधुनिक और व्यवस्थित सोच का उदाहरण था।
Churachandpur नरेंद्र मोदी ने कैडरों को अनुशासन और व्यवहार की छोटी-छोटी आदतों से भी प्रेरित किया — जैसे दरवाज़ा खटखटाना, परिवार का हाल-चाल पूछना, संगठित रहना। इससे कार्यकर्ता केवल संगठन का हिस्सा नहीं, बल्कि समाज में आदर्श प्रतिनिधि बने। मुश्किल समय में उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर कैडरों और उनके परिवारों को भी नैतिक सहारा दिया।
1987 में जब वे भारतीय जनता पार्टी (BJP) के संगठन मंत्री बने, तो वही कैडर निर्माण की परंपरा उन्होंने राजनीति में भी लागू की। ‘संगठन पर्व’ के ज़रिए हज़ारों नए कार्यकर्ता पार्टी से जुड़े। अनुशासन और जवाबदेही उनके कामकाज की नींव रही। वे कभी मीटिंग में देर से नहीं पहुँचते थे और देर से आने वालों को बाहर ही बैठकर शामिल होना पड़ता था।
1987 अहमदाबाद नगर निगम चुनाव में उनकी ‘विन द बूथ’ रणनीति ने कार्यकर्ताओं को जमीनी स्तर पर सक्रिय किया। इसके बाद लाखों नए सदस्य पार्टी से जुड़े। मोदी ने ‘टिफिन मीटिंग्स’ की शुरुआत भी की, जिससे कैडरों और उनके परिवारों को भावनात्मक रूप से संगठन से जोड़ा गया।
मोदी का हमेशा मानना रहा है कि कैडरों में अनुशासन, समर्पण और सेवा भावना होनी चाहिए। आलोचना का संतुलित जवाब और प्रशंसा में संयम — यही उनकी कैडर-निर्माण रणनीति का हिस्सा था।
“आज संगठन केवल एक राजनीतिक ताक़त ही नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक चेतना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश साफ़ है— “अगर जड़ें मज़बूत होंगी, तो शाखाएँ अपने आप खिलेंगी और पेड़ सदियों तक मज़बूत खड़ा रहेगा।”“
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