सुप्रीम कोर्ट में वकील ने किया हंगामा: CJI BR गवई पर जूता फेंकने की कोशिश, सुरक्षा में बढ़ाई गई सतर्कता
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान एक वकील द्वारा मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अदालत में CJI BR बी. आर. गवई पर जूता फेंकने की कोशिश का मामला सामने आया। गवई की पहचान एक अम्बेडकरवादी बौद्ध के रूप में होने के कारण सोशल मीडिया पर यह घटना चर्चा का विषय बन गई है।
नई दिल्ली।
भारत के सुप्रीम कोर्ट में एक अभूतपूर्व घटना सामने आई है जहाँ एक अधिवक्ता ने न्यायालय की मर्यादा तोड़ते हुए न्यायमूर्ति बी. आर. गवई CJI BR गवई पर जूता फेंकने की कोशिश की। यह घटना उस समय हुई जब अदालत में एक सामान्य सुनवाई चल रही थी। सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत कार्रवाई करते हुए आरोपी को काबू में ले लिया और अदालत की कार्यवाही कुछ समय के लिए रोक दी गई।
सूत्रों के अनुसार, आरोपी की पहचान राकेश किशोर नामक अधिवक्ता के रूप में हुई है, जो दिल्ली बार काउंसिल में पंजीकृत हैं। घटना के बाद कोर्ट परिसर में भारी सुरक्षा तैनात कर दी गई है और प्रारंभिक पूछताछ में पता चला है कि अधिवक्ता ने व्यक्तिगत वैचारिक असहमति के कारण यह कदम उठाया।
CJI BR गवई कौन हैं
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई वर्तमान में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीशों में से एक हैं। वे भारत के इतिहास में दूसरे ऐसे दलित पृष्ठभूमि के न्यायाधीश हैं जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति का पद संभाला। गवई लंबे समय से सामाजिक समानता, संवैधानिक नैतिकता और न्यायिक सुधारों के पक्षधर माने जाते हैं।
CJI BR उनकी विचारधारा डॉ. भीमराव अंबेडकर के सिद्धांतों से प्रेरित बताई जाती है और वे अम्बेडकरवादी बौद्ध परंपरा का पालन करते हैं। इस कारण सोशल मीडिया पर यह चर्चा तेज है कि क्या इस घटना का संबंध उनकी धार्मिक-दार्शनिक पहचान से है या फिर व्यक्तिगत असंतोष से।

अदालत की प्रतिक्रिया और सुरक्षा व्यवस्था
घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने इस मामले को “सुरक्षा उल्लंघन और न्यायिक गरिमा पर हमला” बताया है। अदालत के भीतर सुरक्षा कर्मियों की तैनाती बढ़ा दी गई है और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए नई गाइडलाइन्स तैयार की जा रही हैं।
मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने घटना के बाद कहा कि, “न्यायपालिका असहमति को हमेशा सम्मान देती है, लेकिन हिंसा या अपमान का कोई स्थान नहीं है।”
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएँ
घटना के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। कुछ लोगों ने इसे “न्यायपालिका की गरिमा पर हमला” बताया, तो कुछ ने इसे “अम्बेडकरवादी विचारधारा के खिलाफ असहिष्णुता” का प्रतीक कहा।
कई वरिष्ठ वकीलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा कि अदालत की मर्यादा किसी भी हाल में टूटनी नहीं चाहिए, चाहे मतभेद कितने भी गहरे क्यों न हों। वहीं, कुछ उपयोगकर्ताओं ने यह भी कहा कि ऐसे कृत्य न्याय प्रणाली में जनता के भरोसे को चोट पहुँचाते हैं।
कानूनी कार्रवाई की तैयारी
दिल्ली पुलिस ने आरोपी अधिवक्ता के खिलाफ धारा 186 (लोक सेवक के कार्य में बाधा डालना), धारा 353 (लोक सेवक पर हमला) और धारा 504 (उकसावे का अपराध) के तहत मामला दर्ज किया है।
प्रारंभिक जांच में यह भी देखा जा रहा है कि क्या यह घटना सुनियोजित थी या आवेग में की गई हरकत। पुलिस ने आरोपी के सोशल मीडिया अकाउंट और ईमेल की भी जांच शुरू कर दी है ताकि उसके उद्देश्य का पता लगाया जा सके।
यह घटना न केवल अदालत की सुरक्षा पर सवाल उठाती है, बल्कि भारत में विचारधारा और असहमति के बीच संतुलन की आवश्यकता को भी रेखांकित करती है। न्यायपालिका लोकतंत्र का सबसे अहम स्तंभ है, और किसी भी असहमति को अभिव्यक्ति के संवैधानिक दायरे में रहकर ही प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
यह आवश्यक है कि हम असहमति जताने के बजाय संवाद का रास्ता अपनाएँ — क्योंकि संविधान की आत्मा “न्याय, स्वतंत्रता और समानता” में निहित है, न कि हिंसक प्रतिक्रिया में।
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