Kartik Ekadashi 600 वर्ष पुराना आंध्र-प्रदेश के काशीबुग्गा में स्थित वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर
Kartik Ekadashi आंध्र-प्रदेश के काशीबुग्गा में स्थित वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर, काशीबुग्गा क्यों कहलाता है ‘पूर्व का तिरुपति’?
आंध्र-प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के काशीबुग्गा में स्थित वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर का इतिहास, विशेष महत्व और क्यों इसे ‘पूर्व का तिरुपति’ कहा जाता है — जानिए इस पवित्र स्थल की कथा, निर्मिति व संस्कृति। 600 वर्ष पुराना पावन धाम — काशीबुग्गा के वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में श्रद्धालुओं का सैलाब। दिवार्णों में बसा इतिहास, वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में ब्रह्मोत्सव की भव्यता और आस्था का संगम।
आंध्र-प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के पलासा मंडल में काशीबुग्गा नामक कस्बे में स्थित वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर (वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर, काशीबुग्गा) एक प्रमुख वैष्णव तीर्थ स्थल है, जिसे स्थानीय रूप से ‘पूर्व का तिरुपति’ कहा जाता है।
इतिहास और पौराणिक मान्यता Kartik Ekadashi
मंदिर का इतिहास लगभग 600 वर्ष पुराना माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि विजयनगर साम्राज्य के युग में — पंद्रहवीं शताब्दी के आसपास — एक भक्त नारायणदासु को भगवान ने दर्शन दिए और उन्होंने इस स्थान पर मूर्ति स्थापित कर मंदिर निर्माण कराया। माना जाता है कि भगवान विष्णु के अवतार वेंकटेश्वर (बालाजी) ने यहाँ स्वयंभू रूप में प्रकट होकर यह स्थान पवित्र किया था। मंदिर का स्थान भी विशेष है—यह नागावली नदी के किनारे स्थित है, और नदी-स्नान के उपरांत भक्त दर्शन करते हैं।

काशीबुग्गा क्यों कहलाता है ‘पूर्व का तिरुपति’?
इस मंदिर को ‘पूर्व का तिरुपति’ कहा जाने के कई कारण हैं:
- पूजा-पद्धति और धर्मनिष्ठा के मामले में यह स्थान प्रसिद्ध तिरुपति-तिरुमला की नक्कल करता है, इसलिए इसे उसी श्रेणी में देखा जाता है।
- यहां भक्तों की बड़ी संख्या एकादशी तथा कार्तिक मास के दौरान होती है, जो तिरुपति में होने वाली भीड़-वृत्ति से अभिभूत करती है।
- मान्यता है कि यहां दर्शन-पूजा से उसी प्रकार पुण्य मिलता है, जैसा तिरुपति में मिलता है — इसलिए श्रद्धालुओं को यहाँ ‘छोटा तिरुपति’ जैसा अनुभव होता है।
Kartik Ekadashi धार्मिक महत्व और वर्तमान स्थिति
मंदिर में पूजा-उपचार वैष्णव मान्यताओं के अनुरूप चलाए जाते हैं। भक्तों का मानना है कि यहां आने से पाप नष्ट होते हैं, मनोकामना पूरी होती है और मोक्ष-पथ सुगम होता है। हालांकि हाल ही में यहाँ एक दुखद दुर्घटना भी हुई है — एक भगदड़ में कई श्रद्धालुओं की जान गई। इससे यह बात सामने आई है कि तीर्थस्थलों में भीड़-प्रबंधन, सुरक्षा एवं संरचना की क्षमता पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है।
आस्था, इतिहास और सामूहिक अनुभव का संगम है। ‘पूर्व का तिरुपति’ की उपाधि यह संकेत देती है कि भारतीय धर्म-परंपरा में छोटे-बड़े दोनों तीर्थस्थल कितनी महत्ता रखते हैं। आज जब इस मंदिर में श्रद्धालुओं की उपस्थिति लगातार बढ़ रही है, तो इसके सम्यक विकास, दर्शन-प्रवर्तन और सुरक्षा सुनिश्चित करना बेहद ज़रूरी है।
कार्तिक देवउठनी एकादशी पर लोग क्यूँ जाते है 600 वर्ष पुराने आंध्र-प्रदेश में स्थित वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर
कार्तिक देवउठनी एकादशी पर लोग आंध्र-प्रदेश के 600 वर्ष पुराने वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर (काशीबुग्गा) इसलिए जाते हैं क्योंकि —
इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के योगनिद्रा से जागते हैं, और विष्णु दर्शन का अत्यंत शुभ मुहूर्त माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन वेंकटेश्वर स्वामी के दर्शन से तिरुपति जैसा पुण्य फल मिलता है, इसलिए इसे “पूर्व का तिरुपति” कहा जाता है। भक्त मानते हैं कि इस दिन पूजा-अर्चना करने से सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और पापों का नाश होता है। मंदिर का वैष्णव परंपरा से गहरा संबंध और यहाँ की पूजा-पद्धति तिरुपति जैसी है, जिससे भक्तों में विशेष आकर्षण रहता है।
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