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Bihar Chunav 100 साल की उम्र… लेकिन लोकतंत्र के लिए दिल अब भी जवान!

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Bihar Chunav 100 साल की उम्र… लेकिन लोकतंत्र के लिए दिल अब भी जवान!

Bihar Chunav “चुनाव 2025 में बिहार के शताब्दी पार मतदाताओं की भागीदारी दिखाती है लोकतंत्र की जिंदा शक्ति। उम्र भले 100 पार हो, लेकिन आज भी वे गर्व से कहेंगे — ‘मैं वोट डालूंगा!’”

बिहार — 2025 का विधानसभा चुनाव नजदीक है और इस बार भी एक बात पूरे चुनाव मैदान में चर्चा का विषय बनी हुई है — 100 वर्ष से अधिक आयु के मतदाता, जो आजादी के साक्षी रहे हैं, फिर से बूथों की ओर लौटेंगे और अपनी वोटिंग की शक्ति दिखाएंगे।

चुनाव आयोग की प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार, इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में लगभग 7.4 करोड़ मतदाता पंजीकृत हैं। इनमें से कई मतदाता ऐसे हैं जो शताब्दी की दहलीज पार कर चुके हैं — इन्होंने आजादी, विभाजन, लोकतंत्र की चुनौतियाँ, आपातकाल और कई मोड़ देखे हैं। हालाँकि उम्र अधिक हो, लेकिन उनमें राजनीति और देश के प्रति एक अटूट संकल्प अभी भी कायम है।

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“जब मैं भारत विभाजन देखा, आजादी मिली, उसने हमारा जीवन बदला। अब भी वोट नहीं डालूंगा तो क्या युग बदल जाएगा?” — यह सवाल उन बुजुर्गों में से एक का है, जिन्होंने अधिकांश जीवन राजनीतिक बदलावों और सामाजिक संघर्षों को नजदीक से देखा है। बूथों तक जाना आसान नहीं है, लेकिन अक्सर उनके साथ परिवार या सामाजिक कार्यकर्ता सहारा देते हैं।

Bihar Chunav लोकतंत्र के गवाह हैं ये मतदाता

ये मतदाता केवल संख्या नहीं हैं — वे इतिहास, अनुभव और जनादेश का प्रतीक हैं। उनके वोट की प्रेरणा युवा एवं मध्यम उम्र के मतदाताओं को भी असर देती है। सोशल मीडिया पर जब 100-साल से ऊपर के बुजुर्गों की वोटिंग तस्वीरें साझा की जाती हैं, तो जनता में एक गर्व और उत्साह का भाव पैदा होता है — यह दिखाती है कि लोकतंत्र में उम्र की सीमा नहीं होती।

लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। मतदान केंद्रों तक पहुंचने की जटिलताएँ, स्वास्थ्य संबंधी अड़चनें, पहचान-पत्रों की प्रक्रिया और अन्य दिक्कतें इन बुजुर्ग मतदाताओं के लिए बड़ा रोड़ा साबित हो सकती हैं। चुनाव आयोग ने इस बार सुनिश्चित किया है कि बूथों पर सहायक कर्मचारी मौजूद हों और विशेष व्यवस्था हो, ताकि ऐसे लोगों को मतदान का अवसर न छूटे।

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राजनीतिक दल भी इस “शताब्दी पार मतदाता” पर नजर बनाए हुए हैं। क्योंकि उनकी वोटिंग भागीदारी न केवल संवेदनशील मुद्दों पर संदेश देती है, बल्कि यह चुनावी रणनीतियों को भी प्रभावित कर सकती है। कुछ दलों ने विशेष कैंपेन भी शुरू किए हैं — स्वास्थ्य सहायता केंद्रों से लेकर घर-घर संपर्क अभियान — ताकि इन बुजुर्ग मतदाताओं को मतदान केंद्र तक लाया जाए।

जहाँ एक ओर राजनीतिक पार्टियाँ और चुनाव आयोग सक्रिय हैं, वहीं नागरिक समाज और सामाजिक संगठन भी इस दिशा में जुटे हैं। वृद्धजन कल्याण समितियां, वृद्धाश्रम, और स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता मिलकर वृद्ध मतदाताओं की सहयात्रा सुनिश्चित कर रहे हैं — चाहे यह वाहन की व्यवस्था हो, पहचान दस्तावेजों की सहायता हो या बूथ तक पहुँचने का मार्ग हो।

इन 100 पार मतदाताओं की भागीदारी, केवल एक व्यक्तिगत कर्तव्य नहीं है — यह एक सामूहिक संदेश है कि लोकतंत्र की उदारता, नागरिक की सक्रियता और समाज की जिम्मेदारी उम्र से परे हैं। यह कहने जैसा है कि “हम बूढ़े हो सकते हैं, लेकिन हमारी आवाज सुनी जाएगी।”

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जब यह वोटिंग प्रक्रिया पूरी होगी और मतगणना की खबरें सामने आएँगी, तब यह सवाल निहायत गंभीर हो जाएगा — क्या इस बार उनके वोट ने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दिशा तय की, या सिर्फ प्रतीकात्मक स्वरूप में ही रहा? लेकिन एक बात तय है — इस चुनाव में 100 पार मतदाता एक सम्मानित और जीवंत भूमिका निभा रहे हैं।

वोटिंग दिवस पर हम न केवल नए सरकार चुनेंगे, बल्कि उन बुजुर्गों के संघर्ष और संकल्प को भी सम्मान देंगे जिन्होंने जिंदगी की आलम से होते हुए भी लोकतंत्र के इस पर्व में अपनी उपस्थिति पक्की कर ली है।



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