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Chhath Mahaparv 2025 छठ मईया का महापर्व 2025 में कब मनाया जाएगा? पूरी तिथि और शुभ मुहूर्त यहाँ

Chhath Mahaparv 2025

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Chhath Mahaparv 2025 छठ मईया का महापर्व 2025 में कब मनाया जाएगा? पूरी तिथि और शुभ मुहूर्त यहाँ

Chhath Mahaparv 2025 छठ पूजा 2025 की सटीक तिथि, सूर्योदय-सूर्यास्त समय, पूजा विधि और महत्त्व जानें। बिहार, यूपी और झारखंड का यह सबसे बड़ा पर्व कैसे मनाया जाता है — विस्तार से पढ़ें।

Chhath Mahaparv 2025 छठ पूजा 2025: तिथि, महत्त्व और पूजा विधि (600+ शब्दों का विस्तृत लेख)

छठ पूजा, जिसे बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड और अब पूरे देश में अपार श्रद्धा के साथ मनाया जाता है, सूर्य देवता और छठी मैया की उपासना का सबसे बड़ा लोकपर्व है। यह पर्व पूरी तरह प्रकृति, शुद्धता और जीवन की ऊर्जा के प्रतीक सूर्य की आराधना को समर्पित है। 2025 में यह त्योहार दिवाली के बाद मनाया जाएगा — जैसे हर वर्ष होता है।

छठ महापर्व अब सिर्फ बिहार या पूर्वी उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं रहा — यह आज राष्ट्रीय और वैश्विक आस्था का पर्व बन चुका है। परंपरागत रूप से यह पर्व निम्न प्रमुख क्षेत्रों में अत्यधिक धूमधाम से मनाया जाता है:

Chhath Mahaparv 2025

भारत के प्रमुख शहर जहाँ छठ सबसे बड़े स्तर पर मनाया जाता है:

भारत से बाहर जहाँ छठ मनाया जाता है:

छठ पूजा 2025 की प्रमुख तिथियाँ (Tentative):

इन तारीखों की पुष्टि पंचांग और खगोल गणना के अनुसार होगी, लेकिन सामान्य रूप से दिवाली के छठे दिन यह पर्व संपन्न होता है।

छठ पूजा का आध्यात्मिक महत्व

छठ एक ऐसा पर्व है जिसमें कोई मूर्ति पूजा नहीं होती, न ही कोई भोग या विलासिता की सामग्री — केवल प्रकृति, अनुशासन, सूर्योपासना और आस्था। यह माना जाता है कि सूर्य ही जीवन ऊर्जा का मूल स्रोत है और छठ पर्व में व्यक्ति प्रकृति के साथ जुड़कर आत्मशुद्धि करता है।

Chhath Mahaparv 2025

लोक मान्यता है कि छठी मैया संतान सुख, आरोग्य, समृद्धि और परिवार की रक्षा का आशीर्वाद देती हैं। यह पर्व मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा रखा जाता है, लेकिन आजकल पुरुष भी बड़ी संख्या में इस व्रत को करते हैं।

पूजा विधि और अनुष्ठान

  1. नहाय-खाय: व्रती शुद्ध स्नान कर सादा शाकाहारी भोजन करते हैं। घर को पूर्ण रूप से शुद्ध किया जाता है।
  2. खरना: सूर्यास्त के बाद व्रती गंगाजल मिश्रित चावल-गुड़ की खीर बनाते हैं और प्रसाद ग्रहण कर 36 घंटे के निर्जल व्रत की शुरुआत करते हैं।
  3. संध्या अर्घ्य: नदी, तालाब या घाट पर डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर कद्दू-भात, ठेकुआ, फल और गन्ने का प्रसाद अर्पित किया जाता है।
  4. उषा अर्घ्य: अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, यहीं से व्रत पूर्ण होता है और प्रसाद वितरण किया जाता है।

इस पूरे पर्व में शुद्धता और अनुशासन सर्वोच्च होते हैं — स्टील, प्लास्टिक, नॉन-स्टिक बर्तनों तक का उपयोग वर्जित माना जाता है।

क्यों है छठ इतना विशेष?

यह एकमात्र पर्व है जिसमें डूबते और उगते दोनों सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। 36 घंटे का निर्जल उपवास विश्व के सबसे कठिन व्रतों में गिना जाता है। यह त्योहार घर की बजाय घाटों और नदियों पर सामूहिक रूप से मनाया जाता है — लोक जीवन की एक अद्भुत एकता के साथ। वैज्ञानिक आयुर्वेद के अनुसार यह ऋतु परिवर्तन के समय शरीर की आंतरिक ऊर्जा को पुनर्स्थापित करता है।



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