Dhanteras 2025 धनतेरस पर यमराज की पूजा क्यों की जाती है?
धनतेरस (या धनत्रयोदशी) के दिन केवल मां लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की ही नहीं, बल्कि यमराज की पूजा भी विशेष रूप से की जाती है। आइए विस्तार से जानते हैं कि धनतेरस के दिन यमराज की पूजा क्यों की जाती है और इसके पीछे की पौराणिक कथा क्या है।
यम दीपदान की विधि (Yam Deep Daan Vidhi):
- समय: धनतेरस की रात, सूर्यास्त के बाद।
- स्थान: घर के मुख्य द्वार के बाहर, दक्षिण दिशा की ओर।
- विधि:
- एक मिट्टी का दीपक लें।
- उसमें तिल का तेल और एक रुई की बत्ती डालें।
- दीपक जलाकर उसे यमराज के नाम से समर्पित करें।
- प्रार्थना करें:
“मृत्यु भय से रक्षा करें, यमदेव प्रसन्न रहें।”
आध्यात्मिक अर्थ (Spiritual Meaning):
- दीपक जीवन की ज्योति का प्रतीक है।
- दक्षिण दिशा यमराज की दिशा मानी जाती है।
- यह दीपक न केवल अकाल मृत्यु से रक्षा करता है, बल्कि घर में दीर्घायु, स्वास्थ्य और शांति का आशीर्वाद लाता है।

🕉️ संक्षेप में:
कारण | महत्व |
---|---|
राजा हेम की कथा | मृत्यु से रक्षा का प्रतीक |
दीपदान प्रथा | यमराज को प्रसन्न करने के लिए |
आध्यात्मिक अर्थ | दीर्घायु, स्वास्थ्य और शांति की कामना |
दिशा | दक्षिण दिशा – यमराज की दिशा |
समय | धनतेरस की रात सूर्यास्त के बाद |
धनतेरस पर यमराज की पूजा का उद्देश्य मृत्यु के भय को दूर करना और जीवन की आयु बढ़ाना है।
इस दिन जलाया गया एक दीपक, न केवल यमराज को प्रसन्न करता है बल्कि पूरे घर को रोग-मुक्त, भय-मुक्त और समृद्ध बना देता है।
इसलिए हर वर्ष धनतेरस की रात एक “यम दीप” अवश्य जलाना चाहिए —
यह न केवल परंपरा है, बल्कि जीवन के प्रति आभार और प्रकाश का प्रतीक भी है।

पौराणिक कथा: राजा हेम और उनके पुत्र की कहानी Dhanteras 2025
प्राचीन समय में राजा हेम नामक एक राजा थे। ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की कि उनके पुत्र की मृत्यु विवाह के चौथे दिन, सर्पदंश से हो जाएगी — और वह दिन कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी, यानी धनतेरस का ही दिन था।
जब वह दिन आया, तो राजकुमार की पत्नी बहुत बुद्धिमान और धर्मपरायण थी। उसने अपने पति की मृत्यु टालने के लिए एक उपाय किया —
- उसने कमरे के दरवाजे पर ढेर सारे दीपक जलाए, ताकि वहां चारों ओर उजाला हो।
- उसने बहुत सारा सोना, चांदी और आभूषण इकट्ठा कर रखे ताकि वहां रोशनी और चमक बनी रहे।
- वह पूरी रात कहानी और भजन सुनाती रही ताकि उसके पति को नींद न आए।
जब यमराज सर्प का रूप लेकर वहां पहुंचे, तो दीपों की तेज रोशनी और आभूषणों की चमक से उनकी आंखें चकाचौंध हो गईं।
वह अंदर प्रवेश नहीं कर सके और बाहर ही सारे दीपों की लौ में विलीन हो गए।
इस प्रकार, राजकुमार की मृत्यु टल गई।
उस दिन से ही लोग यमराज की प्रसन्नता और दीर्घायु की कामना के लिए धनतेरस की रात “यम दीपदान” करते हैं।
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