Ekadashi 2025 एकादशी पर चावल खाना वर्जित, फिर भी इस मंदिर में मिलता है चावल का प्रसाद जानिए उल्टी एकादशी और वेंकटेश्वर मंदिर का रहस्यमय संबंध
Ekadashi 2025 एकादशी के दिन चावल खाने की मनाही क्यों है और फिर आंध्र प्रदेश के वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में उसी दिन चावल का प्रसाद क्यों बांटा जाता है? जानिए उल्टी एकादशी की पौराणिक कथा और इस परंपरा के पीछे का धार्मिक रहस्य।
Ekadashi 2025 आंध्र प्रदेश का वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर — जिसे “पूर्व का तिरुपति” भी कहा जाता है — हर वर्ष देवोत्थान एकादशी पर लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं, और भक्त मानते हैं कि यही क्षण कल्याण और मोक्ष का आरंभ होता है।
लेकिन इस मंदिर की परंपरा में एक खास बात है — यहां एकादशी के दिन चावल का प्रसाद बांटा जाता है।
वहीं दूसरी ओर, हिंदू शास्त्रों में साफ लिखा है कि एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित है।
तो फिर यह विरोधाभास क्यों?
आइए जानें “उल्टी एकादशी” की वह कथा, जो इस रहस्य को समझाती है।

Ekadashi 2025 क्यों नहीं खाते चावल एकादशी पर?
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, चावल पृथ्वी तत्व से अत्यधिक जुड़ा अनाज है। कहा जाता है कि चावल में जल तत्व की मात्रा अधिक होती है, जिससे यह “तामसिक” माना गया है।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने योगनिद्रा में प्रवेश किया, तब उनके शरीर से “पाप पुरुष” निकला और उसने चावल के दानों में अपना निवास बना लिया।
इसलिए माना गया कि एकादशी के दिन चावल खाने से व्रत का पुण्य नष्ट हो जाता है।

अब सवाल — फिर वेंकटेश्वर मंदिर में क्यों मिलता है चावल का प्रसाद?
कहानी की जड़ उल्टी एकादशी से जुड़ी है, जिसे कुछ परंपराओं में “परम एकादशी” भी कहा जाता है।
पुराणों में वर्णन है कि एक बार देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से कहा —
“प्रभु, यदि आप एकादशी पर जागृत रहकर उपवास करते हैं, तो आपके भक्त कैसे सो सकते हैं?”
तब विष्णु मुस्कुराए और बोले —
“मेरी प्रिय, जो मेरे प्रति पूर्ण समर्पित हैं, वे यदि भक्ति से युक्त चावल का अर्पण करें, तो वह भी मेरे लिए प्रसाद समान होगा।”
इसी से ‘उल्टी एकादशी’ की परंपरा शुरू हुई, जिसमें कुछ विशिष्ट विष्णु मंदिरों में चावल का प्रसाद तैयार कर बांटा जाता है।
वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर उन्हीं प्राचीन परंपराओं में से एक है जहाँ यह परंपरा 600 वर्षों से चल रही है।
स्थानीय मान्यता क्या कहती है?
स्थानीय पुजारियों का कहना है कि इस दिन चावल “भोजन” नहीं, बल्कि “भोग और प्रसाद” के रूप में माना जाता है।
भक्त इसे खाने से पहले मंत्रोच्चार के साथ ग्रहण करते हैं, जिससे इसका पाप प्रभाव नष्ट हो जाता है।
भक्तों का विश्वास है कि ऐसा करने से संपत्ति, संतोष और शुभता प्राप्त होती है।
व्रत और पूजा का महत्व
देवोत्थान एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है।
इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की विशेष पूजा होती है।
वेंकटेश्वर मंदिर में हजारों दीप जलाकर, तुलसी विवाह और रात्रि जागरण का आयोजन किया जाता है।
और ठीक मध्यरात्रि में भक्तों को वह “विशेष चावल प्रसाद” दिया जाता है, जिसे विष्णु के जागरण का प्रतीक माना जाता है।
इस मान्यता के अनुसार, एकादशी का सार “भक्ति और संयम” है — न कि केवल उपवास का पालन।
अगर चावल प्रसाद भगवान को समर्पित भावना से ग्रहण किया जाए, तो वह व्रत को भंग नहीं करता, बल्कि पुण्यफल बढ़ाता है।
इसलिए कहा जाता है —
“जहाँ भावना सच्ची हो, वहाँ नियम भी प्रसाद बन जाते हैं।”
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Kartik Ekadashi 600 वर्ष पुराना आंध्र-प्रदेश के काशीबुग्गा में स्थित वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर
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