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Haritalika Teej को सुहाग का महापर्व और भगवान शिव-पार्वती की भक्ति का पावन दिन

Haritalika Teej

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Haritalika Teej को सुहाग का महापर्व और भगवान शिव-पार्वती की भक्ति का पावन दिन

तिथि हरितालिका तीज भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। सन 2025 में यह पर्व 28 अगस्त, गुरुवार को है।

Haritalika Teej का महत्व

यह पर्व मुख्यतः सुहागिन और अविवाहित महिलाएँ मनाती हैं। सुहागिन स्त्रियाँ अपने पति की लंबी आयु, स्वास्थ्य और सुखमय दांपत्य जीवन की कामना करती हैं। कुंवारी कन्याएँ योग्य वर की प्राप्ति और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए व्रत करती हैं। इसे भगवान शिव और माता पार्वती के दिव्य मिलन की स्मृति में मनाया जाता है।

क्यों करते हैं हरितालिका तीज व्रत? Haritalika Teej

मान्यता है कि माता पार्वती ने कठोर तपस्या कर भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया। इस व्रत को करने से स्त्रियों को माता पार्वती जैसी सौभाग्यशाली जीवनसंगिनी बनने का आशीर्वाद मिलता है। व्रत रखने वाली महिला का दांपत्य जीवन सुख-समृद्धि से भर जाता है और सभी बाधाएँ दूर होती हैं।

इस दिन स्त्रियाँ निर्जला उपवास (बिना भोजन और जल के) करती हैं। माता पार्वती और भगवान शिव की मूर्ति/प्रतिमा को मिट्टी, रेत या रज से बनाकर पूजन किया जाता है। महिलाएँ इस दिन सोलह श्रृंगार करती हैं और समूह में हरितालिका तीज की कथा सुनती हैं।

हरितालिका तीज व्रत कथा (Haritalika Teej Vrat Katha)

भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाने वाली हरितालिका तीज का महत्व तभी पूरा होता है जब स्त्रियाँ व्रत-पूजन के साथ इसकी पौराणिक कथा सुनती और स्मरण करती हैं।

Haritalika Teej व्रत कथा

प्राचीन समय में राजा हिमवान की पुत्री पार्वती जी भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थीं। वे बाल्यावस्था से ही शिवजी के प्रति समर्पित थीं।

लेकिन उनके पिता, राजा हिमवान ने उनका विवाह भगवान विष्णु से करने का निश्चय कर लिया। जब पार्वती जी को यह बात पता चली, तो वे अत्यंत दुखी हो गईं और अपनी एक सखी के साथ गहरे जंगल में चली गईं

वहाँ जाकर उन्होंने निर्जल और कठोर तपस्या आरंभ की। कई वर्षों तक उपवास और तप कर उन्होंने केवल शिवजी को ही अपने पति रूप में पाने की कामना की।

उनकी इस अटूट निष्ठा और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने प्रकट होकर उन्हें अपनी पत्नी बनाने का वचन दिया। बाद में राजा हिमवान ने भी पार्वती जी की इच्छा का सम्मान करते हुए उनका विवाह शिवजी से किया।

कथा का सार

इसी तपस्या और घटना को स्मरण कर हरितालिका तीज का व्रत किया जाता है। इस दिन स्त्रियाँ माता पार्वती की तरह निर्जला व्रत रखती हैं और शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से सुहागिन महिलाओं का सौभाग्य अखंड रहता है और अविवाहित कन्याओं को मनचाहा वर प्राप्त होता है।


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