“Kajari Teej 2025: कजरी तीज का व्रत—पति-पत्नी के रिश्ते में प्रेम, विश्वास और सुख-समृद्धि का संजीवनी मंत्र”
कजरी तीज 2025: तिथि, पूजा विधि, महत्व और कथा
Kajari Teej 2025 की तिथि और समय
- तिथि: मंगलवार, 12 अगस्त 2025
- तृतीया तिथि प्रारंभ: 11 अगस्त 2025, सुबह 10.33 बजे
- तृतीया तिथि समाप्त: 12 अगस्त 2025, सुबह 08.40 बजे
कजरी तीज का पर्व श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह तीज खासतौर पर उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है।
कजरी तीज का महत्व

Kajari Teej 2025: मुख्य रूप से विवाहित औरतों द्वारा अपने पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और वैवाहिक जीवन में प्रेम व सामंजस्य बनाए रखने के लिए की जाती है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा होती है। महिलाएं निर्जला या फलाहार व्रत रखती हैं। यह पर्व मिट्टी के तालाब या नदी के किनारे पूजा, नीम की पूजा, कजरी गीत गाते है।
Kajari Teej 2025: कजरी तीज का व्रत हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए अत्यंत पावन और महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। यह व्रत भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को विशेष श्रद्धा के साथ रखा जाता है और उत्तर भारत के कई राज्यों में बड़े उत्साह और भक्ति भाव से मनाया जाता है। इसका उद्देश्य न केवल पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना करना है, बल्कि दांपत्य जीवन में प्रेम, विश्वास और मधुरता को प्रगाढ़ बनाना भी है।

Kajari Teej 2025 केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि वैवाहिक प्रेम, आपसी समझ और मानसिक शांति के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। यह पर्व हमें सच्चे प्रेम, धैर्य और समर्पण का संदेश देता है।
कजरी तीज की पूजा विधि
सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। व्रत संकल्प लें – पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए। घर में या मंदिर में शिव-पार्वती की प्रतिमा/चित्र स्थापित करें। पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल) से शिवलिंग का अभिषेक करें। ब्रज क्षेत्र में राजा, रानी और नीम देवी की कथा सुनते है और दूसरे को सुनाते है। बेलपत्र, धतूरा, अक्षत, और चंदन अर्पित करें। कजरी तीज का व्रत गीत गाएं और कथा सुनें। व्रत का समापन अगले दिन सुबह पूजा के बाद करें और फलाहार लें।
कजरी तीज व्रत कथा — ब्रज क्षेत्र की प्रचलित राजा, रानी और नीम देवी की कथा
कजरी तीज के दिन महिलाएं उपवास रखकर नीम देवी की पूजा करती हैं और कजरी गीत गाती हैं।
ब्रज क्षेत्र और आसपास के इलाकों में एक विशेष कथा सुनाई जाती है

पौराणिक कथा के अनुसार, बहुत समय पहले ब्रज क्षेत्र में एक राजा और रानी रहते थे। उनके पास सब कुछ था — महल, धन, वैभव — लेकिन संतान सुख नहीं था। संतान के लिए वे कई तप और व्रत करते, पर फल नहीं मिलता था। एक दिन रानी ने सुन रखा कि कजरी तीज का व्रत और नीम देवी की पूजा करने से मनोकामना पूर्ण होती है। रानी ने निश्चय किया कि वह यह व्रत पूरी श्रद्धा से करेगी। व्रत के दिन रानी ने पूरा दिन जल तक ग्रहण नहीं किया और महल से निकलकर एक नीम के पेड़ के नीचे पहुंची। वहां उन्होंने देवी को हल्दी, चूड़ी, साड़ी, श्रृंगार का सामान अर्पित किया और कजरी गीत गाकर पूजा की।
नीम देवी रानी की भक्ति से प्रसन्न हुईं और आशीर्वाद दिया —
“तुम्हारे आंचल में अब संतान की हंसी गूंजेगी और तुम्हारा दांपत्य सुखमय रहेगा।”

कुछ समय बाद रानी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। राजा और रानी ने पूरे राज्य में भंडारा करवाया और यह व्रत हर साल करने का संकल्प लिया। तब से कजरी तीज व्रत नीम देवी की पूजा के साथ पति की लंबी उम्र और दांपत्य सुख के लिए किया जाने लगा।
विशेष परंपराएं
कजरी तीज के दिन नीम के पेड़ की पूजा करना शुभ माना जाता है। इस व्रत में सावन और भादो के गीत गाए जाते हैं, जिन्हें “कजरी गीत” कहते हैं। व्रत रखने से पति-पत्नी के रिश्तों में प्रेम और सामंजस्य बढ़ता है।
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