Kali Chaudas vs Narak Chaturdashi

Kali Chaudas vs Narak Chaturdashi: क्या फर्क है इन दो त्योहारों में? जानें महत्व, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

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Kali Chaudas vs Narak Chaturdashi: क्या फर्क है इन दो त्योहारों में? जानें महत्व, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

काली चौदस और नरक चतुर्दशी एक ही दिन माने जाते हैं, लेकिन दोनों के अर्थ और पूजा विधि अलग हैं। जानिए देवी काली की आराधना से लेकर नरकासुर वध की पौराणिक कथा तक — इन दोनों पर्वों का आध्यात्मिक, धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व।

काली चौदस और नरक चतुर्दशी — एक ही दिन, दो अलग परंपराएँ

Kali Chaudas vs Narak Chaturdashi

दीवाली से ठीक एक दिन पहले आने वाला त्योहार काली चौदस और नरक चतुर्दशी अक्सर एक ही माना जाता है, जबकि दोनों के उद्देश्य और पूजा भाव अलग हैं।
देश के कुछ हिस्सों में इसे ‘छोटी दिवाली’, कुछ में ‘भूत चतुर्दशी’, और कुछ में ‘यम दीपदान दिवस’ कहा जाता है।

मुख्य अंतर (एक नजर में) Kali Chaudas vs Narak Chaturdashi

आधारकाली चौदसनरक चतुर्दशी
देवी/देवतामाता काली / भैरवभगवान कृष्ण / यमराज
उद्देश्यनज़र दोष, तंत्र शक्ति, आत्मरक्षापाप मुक्ति, आयु वृद्धि, यम भय से रक्षा
पूजा समयमध्यरात्रि / रात्रि कालब्रह्म मुहूर्त / प्रातः काल
नामभूत चतुर्दशी, काली पूजाछोटी दिवाली, यम दीपदान
उपयोगकाला तिल, नींबू, सरसोंतेल स्नान, दीप दान, अभ्यंग स्नान

Kali Chaudas vs Narak Chaturdashi क्यों होती है कन्फ्यूजन?

क्योंकि दोनों ही दिन अमावस्या से पहले की चतुर्दशी तिथि पर पड़ते हैं। और हमेशा एक जैसा नहीं — कई बार पंचांग के अनुसार ये अलग तिथियों पर भी हो सकते हैं — इसलिए क्षेत्र के मुताबिक इनके नाम और मायने बदल जाते हैं।

काली चौदस क्या है?

  • “काली चौदस” यानी देवी काली और भैरव की आराधना का दिन
  • इसका मुख्य उद्देश्य तंत्र, आत्मशुद्धि और बुरी शक्तियों से सुरक्षा है
  • घर में काले तिल, सरसों और नींबू से नज़र दोष निवारण किया जाता है
  • साधक लोग अघोर साधना, तंत्र पूजा, काल भैरव पाठ करते हैं
  • गुजरात और महाराष्ट्र में इसे भूत चतुर्दशी भी कहा जाता है — घर को बुरी आत्माओं से मुक्त करने के लिए

नरक चतुर्दशी क्या है?

  • यह दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर दानव के वध की स्मृति में मनाया जाता है
  • इसे रोग, पाप और दुखों से मुक्ति का प्रतीक माना गया है
  • इस दिन उबाल देकर स्नान (अभ्यंग स्नान) करना मंगलकारी माना गया है
  • सुबह जल्दी तेल से मालिश कर स्नान, फिर यमराज को दीप दान किया जाता है
  • दक्षिण भारत और महाराष्ट्र में इसे ‘चोटी दिवाली’ कहते हैं


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