Karwa Chauth Vrat History

Karwa Chauth Vrat History: चांद को अर्घ्य देने से पहले जानिए कैसे शुरू हुआ करवा चौथ का व्रत, क्या है इसका पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व

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Karwa Chauth Vrat History: चांद को अर्घ्य देने से पहले जानिए कैसे शुरू हुआ करवा चौथ का व्रत, क्या है इसका पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व

Karwa Chauth Vrat History करवा चौथ व्रत की शुरुआत कैसे हुई? जानिए इस व्रत का इतिहास, पौराणिक कथाएं, वैज्ञानिक कारण और क्यों आज भी महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं यह निर्जला तपस्या।

भारत में हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत मनाया जाता है। यह दिन सुहागिन महिलाओं के लिए सबसे विशेष माना जाता है। इस दिन वे पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं और चांद के दर्शन के बाद अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि करवा चौथ व्रत की शुरुआत आखिर कब और कैसे हुई? इसके पीछे न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और वैज्ञानिक पहलू भी जुड़े हैं।

Karwa Chauth Vrat History
Karwa Chauth Vrat History

करवा चौथ व्रत का इतिहास Karwa Chauth Vrat History

करवा चौथ की परंपरा का जिक्र महाभारत काल में भी मिलता है। कहा जाता है कि जब पांडव वनवास में थे, तब द्रौपदी ने भी अपने पति अर्जुन की सुरक्षा के लिए यह व्रत रखा था। भगवान कृष्ण ने उन्हें बताया था कि यह व्रत रखने से पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

एक अन्य मान्यता के अनुसार, यह व्रत उस समय शुरू हुआ जब महिलाएं अपने पतियों को युद्ध क्षेत्र में भेजती थीं। तब वे अपने पतियों की सुरक्षा और दीर्घायु के लिए इस दिन व्रत रखतीं और भगवान शिव-पार्वती से उनके मंगल की प्रार्थना करती थीं।

‘करवा’ और ‘चौथ’ का अर्थ

‘करवा’ शब्द मिट्टी के बर्तन से जुड़ा है जो इस दिन पूजा के समय उपयोग किया जाता है, और ‘चौथ’ का अर्थ है चतुर्थी तिथि। यह संयोजन नारी की श्रद्धा, संयम और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। महिलाएं करवे में जल भरकर भगवान गणेश और माता गौरी की पूजा करती हैं, फिर चांद को अर्घ्य देकर पति के हाथ से जल ग्रहण करती हैं।

लोककथा: वीरवती की कथा

करवा चौथ व्रत से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा वीरवती की है। कहा जाता है कि वीरवती नामक एक रानी अपने सात भाइयों की इकलौती बहन थी। विवाह के बाद जब उसने पहली बार यह व्रत रखा, तो भूख-प्यास से कमजोर होकर बेहोश हो गई। भाइयों से यह दृश्य देखा नहीं गया, उन्होंने छल से झूठा चांद दिखा दिया। जैसे ही वीरवती ने व्रत तोड़ा, उसके पति की मृत्यु हो गई। बाद में उसने सच्चे मन से पुनः व्रत रखकर अपने पति को पुनर्जीवित किया। तभी से यह व्रत स्त्रियों के अखंड सौभाग्य का प्रतीक बन गया।

वैज्ञानिक पहलू

वैज्ञानिक दृष्टि से भी करवा चौथ का व्रत शरीर को डिटॉक्स करने और मन को स्थिर रखने में सहायक माना जाता है। चांद को अर्घ्य देना जल और मन के संतुलन का प्रतीक है। इसके अलावा यह पति-पत्नी के बीच विश्वास, प्रेम और मानसिक जुड़ाव को मजबूत करता है।

आज का करवा चौथ

आधुनिक युग में करवा चौथ सिर्फ पारंपरिक रस्म नहीं बल्कि एक भावनात्मक उत्सव बन गया है। अब कई पुरुष भी अपनी पत्नियों के साथ व्रत रखते हैं, जो समानता और साझेदारी का प्रतीक है। सोशल मीडिया पर यह पर्व प्रेम और भारतीय संस्कृति का खूबसूरत मिश्रण बन चुका है।



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