VR News Live

Machail Mata Mandir :”दुर्गम पहाड़ों से होकर… आस्था पहुंचाती है मचैल माता के चरणों में”

Machail Mata Mandir

Machail Mata Mandir

Machail Mata Mandir :”दुर्गम पहाड़ों से होकर… आस्था पहुंचाती है मचैल माता के चरणों में”

Machail Mata Mandir : मचैल माता मंदिर (Machail Mata Mandir) जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के मचैल गाँव में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ स्थल है।

देवी का स्वरूप: यह मंदिर चंडी माता / दुर्गा माता को समर्पित है, जिन्हें स्थानीय लोग मचैल माता कहते हैं। स्थान: चंद्रभागा (Chenab) नदी की एक सहायक धारा के किनारे, समुद्र तल से लगभग 9,500 फीट की ऊँचाई पर।

पहुँचने का मार्ग: जम्मू → किश्तवाड़ (सड़क मार्ग, लगभग 240 किमी) | किश्तवाड़ → गुलाबगढ़ (लगभग 66 किमी) | गुलाबगढ़ से मचैल तक 26 किमी की ट्रेक या खच्चर/पोनियों से यात्रा।

यात्रा का समय: हर साल जुलाई के अंत से अगस्त तक मचैल यात्रा आयोजित होती है, जो लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है।

विशेषता: इस यात्रा की शुरुआत 1980 के दशक में एक पुलिस अधिकारी थकर दास ने की थी। अब यात्रा में छड़ी यात्रा (धार्मिक ध्वज और चिह्न के साथ जुलूस) शामिल होती है। श्रद्धालु यहाँ “जय माता दी” के नारों और भजन-कीर्तन के साथ पैदल चलते हैं।

Machail Mata Mandir क्या है का इतिहास

Machail Mata Mandir

मचैल माता मंदिर का इतिहास

मचैल माता मंदिर, जिसे चंडी माता मंदिर भी कहा जाता है, जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ ज़िले के मचैल गांव में स्थित है और इसका इतिहास धार्मिक आस्था और स्थानीय मान्यताओं से गहराई से जुड़ा है।

1. पौराणिक मान्यता

2. स्थानीय गाथा

3. आधुनिक यात्रा की शुरुआत

4. Machail Mata Mandir का स्वरूप

5. विशेष महत्व

मचैल माता यात्रा का धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व

मचैल माता यात्रा, जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के दुर्गम पहाड़ी इलाकों में आयोजित होने वाली एक प्रमुख वार्षिक तीर्थयात्रा है। यह यात्रा सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि सामुदायिक एकता, साहस और स्थानीय संस्कृति का जीवंत प्रदर्शन भी है।

देवी का स्वरूप और आस्था

मचैल माता को चंडी माता या दुर्गा माता के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि माता शक्ति का वह रूप हैं जो भक्तों की सभी बाधाएं दूर करती हैं और मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। स्थानीय लोगों के लिए माता “कुल देवी” हैं, और वे साल में एक बार अनिवार्य रूप से दर्शन के लिए आते हैं।

Machail Mata Mandir यात्रा का समय और महत्व

यात्रा हर साल जुलाई के अंत से अगस्त तक होती है, जो सावन और भाद्रपद के महीने के शुभ समय में मानी जाती है। इस दौरान छड़ी यात्रा का आयोजन होता है, जिसमें धार्मिक ध्वज (छड़ी) और पूजा सामग्री लेकर भक्त पैदल मचैल मंदिर पहुंचते हैं।

छड़ी यात्रा की परंपरा

1987 में जम्मू-कश्मीर पुलिस के अधिकारी थकर दास ने छड़ी यात्रा की शुरुआत की। यात्रा गुलाबगढ़ से शुरू होती है और 26 किमी का कठिन ट्रेक पार करके भक्त माता के दर्शन करते हैं। यात्रा के दौरान भजन-कीर्तन, ढोल-नगाड़े और “जय माता दी” के नारों से पूरी घाटी गूंज उठती है।

सामाजिक और सांस्कृतिक पक्ष

यह यात्रा स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण है—ट्रेक के मार्ग पर दुकानें, ढाबे और ठहरने की व्यवस्था होती है। पहाड़ी, गूज्जर, बकरवाल और डोगरा समुदाय मिलकर श्रद्धालुओं की सेवा करते हैं, जिससे सामुदायिक सौहार्द मजबूत होता है। महिला श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या में भागीदारी इसे विशेष बनाती है।

आस्था और कठिनाई का संगम

रास्ता ऊबड़-खाबड़, नदी पार करना, ऊंची चढ़ाई, और मौसम की चुनौतियां—ये सभी भक्तों की आस्था और साहस की परीक्षा लेते हैं। फिर भी, हर साल लाखों लोग बिना डर-थकान के यह यात्रा पूरी करते हैं।

धार्मिक फल और मान्यता

मान्यता है कि माता के दर्शन और छड़ी यात्रा में भाग लेने से सभी संकट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। भक्त अपने परिवार की भलाई और संतान सुख के लिए विशेष पूजा कराते हैं।

सभी न्यूज़ अपडेट के लिए हमारे इन्स्ताग्राम पेज VR LIVE से जुड़े

Exit mobile version