“पक्षियों की सामूहिक आत्महत्या” (Mass Bird Suicide)
Mass Bird Suicide: असम के जतिंगा गाँव का अनसुलझा रहस्य। असम (Assam) में जतिंगा (Jatinga) नाम का एक छोटा-सा गाँव है, जो “पक्षियों की सामूहिक आत्महत्या” (Mass Bird Suicide) की अजीब घटना के लिए प्रसिद्ध है।
Mass Bird Suicide क्या है जतिंगा रहस्य?
- यह गाँव दिमा हासाओ ज़िले में स्थित है।
- हर साल सितंबर से नवंबर के बीच, खासकर अमावस्या की रात और घने कोहरे में यहाँ यह घटना देखी जाती है।
- दर्जनों प्रवासी और स्थानीय पक्षी अचानक गाँव की ओर उड़कर आते हैं और घरों व पेड़ों से टकराकर मर जाते हैं।
Mass Bird Suicide किन पक्षियों पर असर?
यह घटना मुख्य रूप से रात में उड़ने वाले पक्षियों पर असर डालती है, जैसे:
- टाइगर बिटर्न
- ब्लैक बिटर्न
- पोंड हेरोन
- पेरिज़ (Partridges)
- क्राउ (कौवे)
- ड्रोंगो आदि
Mass Bird Suicide सामूहिक पक्षी आत्महत्या कब से जारी है?
जतिंगा गाँव में यह रहस्यमयी घटना 1905 से दर्ज की गई है। ग्रामीणों ने पहली बार इसे तब नोटिस किया, जब वे एक भैंस की तलाश कर रहे थे। उन्होंने देखा कि रात में जलती मशालों के आसपास पक्षी अजीब व्यवहार करते हुए खुद को टकरा रहे थे और मर रहे थे।
जटिंगा पक्षी आत्महत्या की रहस्यमयी कहानी
शुरुआत – रहस्य की खोज (1905)
असम के दिमा हसाओ ज़िले में बसा है छोटा-सा गाँव जटिंगा। चारों तरफ़ घने जंगल, ऊँची पहाड़ियाँ और कोहरे से ढकी रहस्यमयी रातें।
सन 1905 की बात है। गाँव के कुछ लोग अपनी भैंस की तलाश में रात को जंगल की ओर गए। रास्ते में उन्होंने देखा कि जलती मशालों की रोशनी की ओर अचानक पक्षी झुंड के झुंड उड़ते हुए आए और खुद टकराकर मर गए।
गाँव वालों के लिए यह दृश्य भयावह था। उन्हें लगा कि यह कोई शापित जगह है।
Mass Bird Suicide अंधविश्वास और लोककथाएँ
धीरे-धीरे यह खबर पूरे इलाके में फैल गई।
किंवदंती बनी कि बहुत समय पहले तीन महिलाओं को काला जादू और टोना-टोटका करने के आरोप में जिंदा जला दिया गया था।
गाँव वालों का विश्वास था कि इन्हीं महिलाओं की आत्माएँ पक्षियों के रूप में लौटती हैं और गाँव को श्राप देती हैं।
डर के कारण नागा जनजाति ने उस जगह को छोड़ दिया।
क्यों करते हैं ऐसा? (वैज्ञानिक कारण)
वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने इस रहस्य को समझने की कोशिश की:
- भ्रमित होना (Disorientation):
- कोहरे, तेज़ हवाओं और लगातार बारिश में पक्षी दिशाभ्रमित हो जाते हैं।
- गाँव की रोशनी उन्हें और भ्रमित कर देती है।
- थकान और आकर्षण:
- मौसम की प्रतिकूलता के कारण थके पक्षी रोशनी की तरफ आकर्षित होकर घरों और पेड़ों से टकरा जाते हैं।
- यह आत्महत्या नहीं बल्कि “भ्रमित उड़ान” (Disoriented Flight) का नतीजा है।
खासियत
- जतिंगा अब एक पर्यटन स्थल (Tourist Spot) बन चुका है।
- लोग इस रहस्यमयी घटना को देखने दूर-दूर से आते हैं।
क्या अब भी होता है?
- पहले यह घटना बड़े पैमाने पर होती थी, लेकिन अब पक्षियों की मौत की संख्या काफी कम हो गई है।
- कारण: जागरूकता, गाँव में रोशनी का नियंत्रण और पक्षी संरक्षण प्रयास।
जटिंगा कैसे पहुँचें
यह हाफलोंग शहर से 9 किलोमीटर दूर स्थित है , और इसमें एक पक्षी-दर्शन केंद्र भी है जो हाफलोंग स्थित जिला वन कार्यालय से पूर्व सूचना प्राप्त करके आवास की व्यवस्था कर सकता है। हालाँकि सिलचर के लिए बसें उपलब्ध हैं, लेकिन एक दिन की यात्रा में ऑटो द्वारा जतिंगा हाफलोंग जाना आसान हो सकता है। हवाई मार्ग (By Air) गुवाहाटी से भी फ्लाइट लेकर पहले सिलचर या दीफू पहुँचा जा सकता है। रेल मार्ग (By Train) हाफलांग से जटिंगा सिर्फ़ 9 किमी की दूरी पर है। सड़क मार्ग (By Road) जटिंगा, हाफलांग (Dima Hasao जिला मुख्यालय) से केवल 9-10 किमी दूर है।
कब जाएँ? (Best Time to Visit)
खासकर चाँदनी रातों और हल्की धुंध वाली शामों में यह घटना सबसे ज़्यादा होती है। पक्षियों का यह रहस्यमयी व्यवहार सितंबर से नवंबर के बीच देखने को मिलता है। Bird Watching Point (Jatinga Point) हाफलांग हिल स्टेशन (असम का मिनी-शिमला) स्थानीय जनजातीय संस्कृति और भोजन
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