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Shiva श्रावण में सिर्फ व्रत नहीं, ये नियम भी निभाएं वरना अधूरा रहेगा पुण्य!

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Shiva श्रावण में सिर्फ व्रत नहीं, ये नियम भी निभाएं वरना अधूरा रहेगा पुण्य!

श्रावण मास हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र और धार्मिक महत्व वाला महीना होता है। इस महीने में उपवास करना तो एक प्रमुख नियम है, लेकिन इसके साथ-साथ कुछ और नियम और आचरण भी माने जाते हैं, जिनका पालन करना पुण्यदायी और शुभ माना जाता है। 42 दिनों तक अनोखी साधना करते है लोग।

Shiva शिव का एक अंग होने की जागरूकता

आप वैसे भी शिव के अंग हैं। ‘शि-व’ का अर्थ होता है – वह जो नहीं है। जो नहीं है, उसी शून्यता का विशाल विस्तार ही अस्तित्व है। उस असीम शून्यता के विभिन्न अंग हैं – एक आकाशगंगा, एक तारा, एक सौरमंडल, एक ग्रह, एक अणु या ‘आप’। क्योंकि ये सभी चीजें शून्य से ही निकली हैं, इसलिए हर चीज शिव का ही अंग है। आप भी शिव के ही एक अंग हैं, बस इस जागरूकता के बिना जी रहे हैं।

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यहाँ श्रावण मास में उपवास के साथ-साथ पालन किए जाने वाले प्रमुख नियम दिए गए हैं:

Shiva श्रावण मास में पालन किए जाने वाले नियम:

1. बाल, नाखून और शेविंग न कराना:

2. लहसुन और प्याज से परहेज़:

3. ब्रह्मचर्य पालन:

4. नकारात्मक विचारों से दूर रहना:

5. शिव पूजा और जल अर्पण:

6. सोमवार का व्रत:

7. नीला, हरा या सफेद वस्त्र धारण करना:

8. नियमित मंदिर जाना या घर पर पूजा करना:

9. दान-पुण्य करें:

10. कांवड़ यात्रा में शामिल होने वालों के लिए विशेष नियम:

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Shiva इन नियमों का पालन पूरी श्रद्धा और संयम से करने से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और साधक को सुख, समृद्धि और शांति का आशीर्वाद मिलता है।

ब्रह्मांड से जुड़े बिना अस्तित्व असंभव है

क्या आप बिना ब्रह्मांड से जुड़े एक पल भी जीवित रह सकते हैं? नहीं। जब मैं ब्रह्मांड कहता हूँ, तो चाँद-सूरज की बात नहीं कर रहा, बल्कि उस शून्यता की, जो सब कुछ में व्याप्त है। अगर आप इसी असीम शून्यता का एक हिस्सा हैं, तो फिर आप शिव का ही विस्तार हैं। हम सिर्फ यह अनुभव कराना चाहते हैं — न विचारों के ज़रिए, न किसी शिक्षा के माध्यम से — बल्कि प्रत्यक्ष अनुभव के रूप में।

जागरूकता लाने की 42 दिन की प्रक्रिया

आप शिव के अंग तो हैं ही, लेकिन आपको उसका अनुभव नहीं है। इसी को जागरूकता में लाने के लिए यह 42 दिन की साधना बनाई गई है। यदि आप ब्रह्मांड से जुड़े हुए होने का अनुभव कर पाते, तो न डर होता, न अकेलापन, न संघर्ष। क्योंकि अभी आप खुद को एक अलग, अलग-थलग अस्तित्व मानते हैं, इसलिए जीवन संघर्षपूर्ण लगता है — जन्म, बढ़ना, बूढ़ा होना, मरना — हर चरण एक भारी अनुभव बन जाता है।



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