Uttarakhand : श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया गया सातों-आठों लोक पर्व
देवभूमि उत्तराखंड में कई ऐसे पर्व हैं जिनकी अपनी ख़ास पहचान है। उन्हीं में से एक है ‘सातों-आठों’ पर्व। जो श्रद्दा और उल्लास के साथ मनाया गया। इसमें आराध्य देव शिव और गौरी को याद किया जाता है।
Uttarakhand : कुमाऊं क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण लोक पर्व, सातों-आठों पर्व आज बागेश्वर जिले में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया गया। ग्रामीण अंचलों से लेकर नगर तक लोगों ने परंपरा के अनुरूप उपवास, पूजा और सामूहिक मेल-मिलाप कर इस पर्व को जीवित रखा। यह पर्व भाद्रपद मास की सप्तमी और अष्टमी को मनाया जाता है और इसमें महिलाएं गौरा-महेश की पूजा करती हैं। पर्व की शुरुआत बिरुड पंचमी से होती है, जब महिलाएं सात प्रकार के अनाज भिगोकर रखनी हैं। इस दौरान पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार आराध्य देव शिव व गौरी को याद किया गया। पूजा के दौरान मंत्रोच्चार के बीच लोकगीतों की धूम रही।

Uttarakhand महिलाओं ने पारंपरिक परिधान में हिमालय की बेटी को याद किया। पंडित देवेन्द्र जोशी ने बताया कि उत्तराखंड की संस्कृति का यह लोक पर्व प्रतिवर्ष पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। सावन के महीने में होने वाला यह पर्व धन-धान्य व खुशहाली का प्रतीक है। इस मौके पर देश के व समाज के कल्याण की कामना ईश्वर व आराध्य देव से की जाती है।
“देवभूमि की धरोहर: श्रद्धा और लोकगीतों से सजा सातों-आठों”
सातों-आठों पर्व एक तरीके से बेटी की विदाई का जैसा ही समारोह होता है। जिसमें माता गौरी को मायके से अपने पति के साथ ससुराल को विदा किया जाता है। इस अवसर पर गांव वाले भरे मन व नम आंखों से अपनी बेटी गमरा को जमाई राजा महेश्वर के साथ ससुराल की तरफ विदा कर देते हैं। साथ ही साथ अगले वर्ष फिर से गौरा के अपने मायके आने का इंतजार करते हैं।
लोक पर्व सातों-आठों की शुरुआत भाद्रपद मास (अगस्त-सितंबर) की पंचमी तिथि से होती है। इसे बिरुड पंचमी भी कहते हैं । इस दिन हर घर में तांबे के एक बर्तन में पांच अनाजों मक्का, गेहूं , गहत, ग्रूस व कलू को भिगोकर मंदिर के समीप रखा जाता है। इन अनाजों को सामान्य भाषा में बिरुडे या बिरुडा भी बोला जाता है। ये अनाज औषधीय गुणों से भी भरपूर होते हैं। व स्वास्थ्य के लिए भी अति लाभप्रद होते हैं। इन्हीं अनाजों को प्रसाद के रूप में बांटा एवं खाया जाता है।
धन-धान्य और समृद्धि का प्रतीक Uttarakhand
भिगोए जाने वाले अनाज मक्का, गेहूं, गहत , ग्रूस(गुरुस), चना, मटर और कलों हैं। तांबे या पीतल के बर्तन को साफ़ कर उसमें धारे अथवा नौले का शुद्ध पानी भरा जाता है. बर्तन के चारों ओर नौ या ग्यारह छोटी-छोटी आकृतियां बनाई जाती हैं । ये आकृतियां गोबर से बनती हैं। गोबर से बनी इन आकृति में दूब डोबी जाती है। कुमाऊं में पिथौरागढ़ तथा चम्पावत के नेपाल सीमा से गुमदेश इलाके के दर्जनों गांवों में सातों आठों पर्व हर्षोल्लास से मनाया जाता है। महिलाएं गौरा महेश की गीतों के माध्यम से स्तुति गान करती हैं।
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