Satyajit Ray

Satyajit Ray: सत्यजीत रे ने अपनी पत्नी के गहने फिल्म बनाने के लिए बेच दिए थे

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Satyajit Ray: Hindi cinema के महान निर्देशक Satyajit Ray को कौन नहीं जानता? आज एक से बढ़कर एक हिट फिल्में बनाने वाले सत्यजीत रे की सौवीसी वर्षगांठ है। सत्यजीत रे एक ऐसे कलाकार थे जिनका नाम देश भर में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी फैल गया था। उनके पास भारतीय सिनेमा में एक से अधिक हिट फिल्में थीं। फिल्म इंडस्ट्री में कई प्रसिद्ध अभिनेता हुए हैं। कई लोगों ने अपने उत्कृष्ट काम से फिल्म इंडस्ट्री को पूरी तरह से बदल दिया। इनमें से एक सत्यजीत रे है। आज उनकी जयंती पर उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें जानें..।

Satyajit Ray: दो मई 1921 को जन्मे, देश के महान निर्देशकों में से एक हैं। वह सिर्फ एक सफल निर्देशक नहीं थे; वह कलाकार, लेखक, चित्रकार, फिल्म निर्माता, गीतकार और कॉस्ट्यूम डिजाइनर भी थे। उनकी कई यादगार फिल्मों में पाथेर पांचाली, अपराजितो, अपूर संसार और चारुलता शामिल हैं। उन्होंने अपने जीवन में 37 फिल्में बनाईं, जिससे वह पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हुए।

भारतीय सिनेमा में एक महत्वपूर्ण योगदान देने वाले सत्यजीत रे की एक इंग्लैंड यात्रा के बाद से फिल्मों के प्रति उनका आकर्षण बढ़ा। यह अप्रैल 1950 की बात है, रे अपनी पत्नी के साथ इंग्लैंड गए थे। उस समय सत्यजीत रे एक विदेशी विज्ञापन कंपनी में थे। कम्पनी ने रे को छह महीने के लिए लंदन के हेड ऑफिस में काम को बेहतर ढंग से सीखने के लिए भेजा था।

1950 में Satyajit Ray लंदन गए थे। उन्होंने वहां कई फिल्में देखी। फिल्मों से काफी प्रभावित होकर वे भारत आकर ‘पाथेर पांचाली’ पर फिल्म बनाएंगे। लंदन में उन्होंने बाइसिकल थीव्ज नामक फिल्म देखी, जो उनके मन में निर्देशक बनने की इच्छा जगाई। लंदन में रहते हुए वह लगभग सौ फिल्में देखी। सत्यजीत रे ने अपनी पहली फिल्म पाथेर पांचाली बनाई, जो उनकी चाहत थी।

पांच फिल्में जो Satyajit Ray को भारतीय सिनेमा का सर्वश्रेष्ठ फिल्मकार बनाती हैं

1. पाथेर पांचाली

सत्यजीत रे की पहली फिल्म थी ‘पाथेर पांचाली’। पाथेर पांचाली का अर्थ है ‘एक छोटे रास्ते का गीत’ या ‘पथगीत’। 16 अगस्त 1958 को पाथेर पांचाली को वैंकूवर फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट फिल्म के लिए पांच पुरस्कार मिले। इतना ही नहीं, इसे कान और गोल्डन ग्लोब जैसे महत्वपूर्ण पुरस्कार भी मिले हैं। पाथेर पांचाली बिभूतिभूषण बंदोपाध्याय द्वारा लिखित एक उपन्यास का नाम है। रे ने 1943 में इस उपन्यास को पढ़ा तब फ़िल्म बनाने का विचार नहीं था। लेकिन 1950 में लंदन में अंग्रेजी फिल्म ‘बाइसिकल थीव्स’ देखने के बाद उन्होंने फिल्म बनाने का निर्णय लिया।

ये फिल्म 26 अगस्त 1956 को रिलीज हुई, बावजूद कई आर्थिक चुनौतियों से। फिल्म को शुरू में अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली, लेकिन तीन हफ्ते बाद फिल्म ने इतनी तेजी से कमाई की कि कई रिकॉर्ड टूट गए।

2. अपराजितो

सत्यजीत रे की फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ की 1956 में रिलीज हुई सीक्वल फिल्म ‘अपराजितो’ है। जिन लोगों को लगता है कि फिल्मों को कई भागों में बनाकर रिलीज करने की परंपरा नई है, वे जानते हैं कि रे ने इसे 50 के दशक में ही शुरू किया था। ‘द अपु ट्रायलॉजी’ नामक तीन फिल्मों का उनका निर्माण था। पहली फिल्म ‘पाथेर पांचाली’, दूसरी फिल्म ‘अपराजितो’ और तीसरी फिल्म ‘द वर्ल्ड ऑफ अपु’ इसमें शामिल हैं। विभूतिभूषण बनर्जी का उपन्यास ‘अपराजितो’ फिल्म पर आधारित है।

रे ने “पाथेर पांचाली” बनाते समय कभी नहीं सोचा था कि वह एक सीक्वल बनाएंगे, लेकिन फिल्म की सफलता ने उन्हें प्रेरित किया। 11 अक्टूबर 1956 को “अपराजितो” का प्रसारण हुआ। इस फिल्म ने ग्यारह इंटरनेशनल अवॉर्ड जीते। इसमें प्रतिष्ठित सम्मानों में गोल्डन लॉयन और क्रिटिक्स अवॉर्ड शामिल हैं।

3. अपूर संसार/द वर्ल्ड ऑफ अपु

सत्यजीत रे की तीसरी फिल्म, “द अपु ट्रायलॉजी”, है। अपूर संसार नाम से भी जाना जाता है। 1959 में रिलीज हुई इस फिल्म ने भारतीय सिनेमा को दुनिया भर में एक अलग मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया। भारतीय फिल्मों का विश्वव्यापी रुतबा बढ़ने लगा। 1960 के लंदन फिल्म फेस्ट में सर्वश्रेष्ठ ओरिजनल फिल्म का पुरस्कार जीता था। इस साल एडिनबर्ग इंटरनेशनल फिल्म फेस्ट में भी पुरस्कार पाकर चर्चा में आई। 1962 के बाफ्टा अवॉर्ड में बेस्ट फॉरेन फिल्म और बेस्ट फिल्म कैटेगरी में भी नामांकित किया गया था। इसी फिल्म से शर्मिला टैगोर ने अपना अभिनय करना शुरू किया था।

यह बंगाली भाषा में रिलीज हुई फिल्म भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। यह भी बेस्ट फीचर फिल्म का नेशनल फिल्म अवॉर्ड जीता। अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने इसे देखा था।

4. महानगर/द बिग सिटी

Satyajit Ray ने 1963 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘महानगर’ में कोलकाता शहर की सुंदरता को बड़े करीने से चित्रित किया है। एक ऐसी फिल्म जो एक पति और पत्नी को दो अलग-अलग मार्गों पर ले जाती है इसमें समाज, नवीन विचारों वाले लोग और पुरानी परंपराओं को बचाने वाले लोग हैं। फिल् म के प्रमुख पात्र इन आदर्शों के बीच फंसे हुए हैं। इस फिल्म को माधवी मुखर्जी और अनिल चटर्जी की बेहतरीन एक्टिंग ने और भी बेहतरीन बना दिया है। फिल् म में उस समय की राजनीति भी मनोरंजक रूप से दिखाई देती है।

इस फिल्म ने जया बच्चन का सिनेमाई करियर शुरू किया था। इस फिल्म की दुनिया भर में खूब तारीफ हुई। 1964 में सत्यजीत रे को 14वें बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट डायरेक्टर का गोल्डन बियर अवॉर्ड मिला। 36वें ऑस्कर अवॉर्ड में सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म के लिए नामांकित हुआ।

5. आगंतुक/द विजिटर

सत्यजीत रे की अंतिम फिल्म ‘आगंतुक’ (1991) थी। लेकिन यह उनकी सबसे अच्छी फिल्मों में से एक है। फिल् म में उत्पल दत्त एक बहुत अमीर महिला का खोया हुआ बड़ा चाचा होता है। यह दावा स्वाभाविक रूप से शक पैदा करता है। फिल् म के किरदारों और दर्शकों दोनों के मन में कई प्रश्न हैं। फिल् म दर्शकों को कुछ जवाब देती है और कुछ छोड़ देती है। इस फिल्म में एक्शन के साथ-साथ कोलकाता की सुंदरता भी दिखाई देती है।

साल 1992 में आयोजित हबुए नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स में इसे बेस्ट फीचर फिल्म और बेस्ट डायरेक्टर के साथ स्पेशल ज्यूरी अवॉर्ड मिला था. फिल्म में उत्पल दत्त के साथ ममता शंकर, दीपंकर डे, धृतिमान चटर्जी, प्रमोद गांगुली और रवि घोष लीड रोल में हैं. इस फिल्म की शूटिंग के वक्त सत्यजीत रे बीमार रहते थे, लेकिन फिल्म पर कोई असर नहीं आने दिया था.

Satyajit Ray: सत्यजीत रे ने अपनी पत्नी के गहने फिल्म बनाने के लिए बेच दिए थे

सिनेमा के महान निर्देशक सत्यजीत रे | Indian Filmmaker Satyajit Ray