Yes Papa Review

Yes Papa Review: बेहद गंभीर मुद्दे पर बनी एक असरहीन फिल्म, अनंत महादेवन की अदाकारी देख लोग तरस जाएंगे।

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Yes Papa Review: हमारे देश में अक्सर बच्चों के यौन शोषण के मामले सुनने में आते हैं। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसके बारे में बहुत चर्चा होती है, लेकिन व्यवहारिक रूप से इसमें कोई सुधार नहीं होता है। ऐसे परिस्थितियों में शिकार बच्चे अकेले घुटते रहते हैं, लेकिन किसी से कुछ नहीं कह पाते। ऐसी घटनाओं के बारे में उनके माता-पिता को पता नहीं चलता था।

कुछ बच्चे ऐसी घटनाओं के बारे में अपने माता-पिता से शिकायत भी करते हैं, लेकिन किसी बच्चे के साथ घर में ऐसा घिनौना व्यवहार हो तो उसकी शिकायत किससे करें? यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है। फिल्म ‘यस पापा’ की कहानी एक ऐसी लड़की की है जिसे बचपन में हुआ कुछ याद नहीं आता।

फिल्म की कहानी शुरू होती है जब विनीता घोषाल नाम की एक महिला पर उसके पिता की हत्या का आरोप लगाया जाता है। कहानी के दौरान, विनीता घोषाल एक तलाकशुदा महिला है। उसके तलाक का कारण बताया जाता है यौन उदासीनता। फिल्म की कहानी दर्शकों को अतीत में ले जाती है और विनीता के दर्दनाक और खौफनाक बचपन का खुलासा करती है। इस बात ने उसके जीवन पर इतना गहरा असर डाला कि उसे इससे घृणा होने लगी और उसके जीवन में एक ऐसा मोड़ आता है जब वह अपने पिता को मार डालती है।

Yes Papa Review: निर्देशक सैफ हैदर हसन

फिल्म के लेखक-निर्देशक सैफ हैदर हसन ने एक गंभीर मुद्दे पर फिल्म बनाई है, जिस पर व्यापक बहस होनी चाहिए। और इस विषय पर बहुत गहराई से बात करने की जरूरत है; अगर इसे हल्के में लिया गया तो हम जो कहना चाहते हैं, उसे सही से नहीं कह पाएंगे। यह फिल्म ‘यस पापा’ में भी देखा गया है। इस फिल्म में पिता का किरदार देखकर ना तो घृणा होती है ना ही सहानुभूति होती है। पिता-पुत्री का संबंध बहुत पवित्र होता है।

बहस करना आवश्यक था अगर ऐसा रिश्ता किसी भी कारण से गलत था और इसके पीछे एक पिता की मानसिक स्थिति और बीमारी क्या हो सकती थी। निर्देशक सैफ हैदर हसन ने इसे हल्के में पेश किया, जिससे फिल्म की कहानी भी अच्छी तरह से नहीं चलती।

Yes Papa Review: सैफ हैदर हसन एक मशहूर अभिनेता हैं।

सैफ हैदर हसन एक मशहूर अभिनेता हैं। वह बहुत से नाटकों का निर्देशन कर चुका है। शायद वह बीच-बीच में नाटक नहीं, फिल्म का निर्देशन कर रहे थे। फिल्म का 75% सीन कोर्ट का है। उसने फिल्म में फिल्मी कोर्ट नहीं बल्कि असली कोर्ट दिखाने की कोशिश की है, इसलिए उन्होंने बहुत बड़ा रिहर्सल बनाया है।

लेकिन कोर्ट में मौजूद वातावरण को पेश नहीं कर पाए। कोर्ट में दोनों वकीलों के बीच केस को लेकर होने वाली जिरह बहुत हल्की लगती है। फिल्म के निर्देशक यहां बेटी को पिता के घर रहने ही क्यों आती है, जब वह जानती है कि उसके पिता कैसे हैं?

अनंत महादेवन ने विनीता घोषाल के पिता संगी घोषाल की भूमिका निभाई है, जो इस फिल्म में है। वह कविता और गीत गाकर अपनी बेटी के सामने आते हैं, ऐसा लगता है कि वह उसकी बेटी नहीं बल्कि उनकी प्रेमिका है जिसके विरह में वह तड़प रहे हैं। यह अनंत महादेवन के करियर में सबसे कमजोर भूमिका रही है। फिल्म की कहानी को खुद निर्देशित कर रहे अनंत महादेवन ने अपने किरदार का सार नहीं समझा।

गीतिका त्यागी विनीता घोषाल की भूमिका में असरहीन लगी। तेजस्विनी कोल्हापुरे और संजीव त्यागी वकील की भूमिका में बिल्कुल भी नहीं जमे। संजीव त्यागी ने वकील की भूमिका में बहुत से कलाकारों की मिमिक्री करते हुए दिखाई दी। विनीता घोषाल की माँ नंदिता घोषाल की भूमिका में नंदिता पुरी को देखकर लगता है कि निर्देशक सैफ हैदर हसन ने इस किरदार के लिए अच्छी तरह से काम नहीं किया था। दिव्या सेठ ने जज की भूमिका में बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश की है। फिल्म की प्रोडक्शन, सिनेमेटोग्राफी, संगीत, संकलन, बैकग्राउंड स्कोर और संगीत का मूल्य आम है।


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