Do Aur Do Pyaar Review: 

Do Aur Do Pyaar Review: जब एक अफेयर के बाद प्रेमी से फिर प्यार होता है, एक अजीब प्रेम कहानी

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Do Aur Do Pyaar Review: “Two and a Half Love” फिल्म को देखना आज की सामाजिक संरचनाओं में छिपे हुए सवालों की खोज करने जैसा है। फिल्म देखते समय दर्शकों को थोड़ा असहज लग सकता है, लेकिन कला है जो असहज को शांत करती है।

सिनेमा देखते समय निरापद होना बहुत मुश्किल है। फिल्मी पोस्टरों, टीजरों और ट्रेलरों ने दर्शकों को फिल्म देखने से पहले एक पूर्वाभास बनाने की कोशिश की है। लेकिन फिल्म “दो और दो प्यार” अपने आप में एक प्रेम कहानी है। संबंध क्या हैं? मन से या तन से। विवाह के बिना प्यार की तलाश क्यों करते हैं?

क्या इसलिए कि उसका अच्छा खासा वैवाहिक जीवन पटरी से उतर गया है या फिर उसे विवाह से पहले कभी प्यार नहीं हुआ था, जिससे वह हर बार प्यार पाने को बेताब हो जाता था। शीर्षा गुहा ठाकुरता की फिल्म “दो और दो प्यार” एक याद दिलाने वाली फिल्म है जब बासु चटर्जी और विनोद पांडे जैसे निर्देशक वैवाहिक रिश्तों में निजी सुख खोजने वाली कहानियों पर फिल्में बनाते थे।

Do Aur Do Pyaar Review: कहानी दो विवाहेत्तर संबंधों की है।


निर्देशक शीर्षा गुहा ठाकुरता ने विज्ञापन फिल्में बहुत अच्छी तरह बनाई हैं, और यही कारण है कि वह इंसानी भावना को इतनी गहराई से समझ पाई है। फिल्म शुरू होती है दो जोड़ों के बीच दिखने वाले सम्मोहक प्यार से, जो असहज परिस्थितियों में मन की अंतर्कथा समेटे हुए है। एक कॉर्क फैक्ट्री का मालिक एक अभिनेत्री से प्यार करता है। एक डेंटिस्ट और एक फोटोग्राफर प्रेमी हैं।

प्यार करने वाले लोग शादीशुदा हैं। दोनों के विवाहेत्तर संबंध, तीन साल का प्यार और बारह साल की शादी लेकिन, फिर कोई ऐसा भी होता है कि जिससे आप संबंधित हैं, वही आपसे पूछता है कि आप किसी से संबंधित हैं या नहीं। जवाब है, किससे? अपने प्रेमी से? प्रेम का अर्थ क्या है? क्या वे साथ बिताने वाले समय हैं? या शायद ये पारिवारिक दायित्वों को लेते हुए किसी व्यक्ति के हाथों से फिसल चुका समय है?

Do Aur Do Pyaar Review: असहज संबंधों की साधारण कहानी

फिल्म “Two and a Half Love” को देखना आज की सामाजिक संरचनाओं में छिपे हुए सवालों की खोज जैसा ही है। यह प्रेम दो अलग-अलग क्षेत्रीय मूल्यों वाले उद्यमीओं से आता है। दोनों अपनी संबंधों को छुपाते हैं। साइलेंट मोड में मोबाइल की लगातार बजती घंटियों को अनदेखा करने की कोशिश करते हैं। एक-दूसरे की पसंद में खुद को खुश रखने की कोशिश करते दिखते हैं, और मातम के वातावरण में उनका प्रेम पुनर्जीवित होता है।


फिल्म “दो और दो प्यार” फिल्म “लवर्स” का हिंदी संस्करण है, लेकिन इसके लेखकों ने हिंदी फिल्म दर्शकों की भावनाओं, संवेदनाओं और आवेगों को समझने में सफलता पाई है। शीर्षा ने अपने लेखकों और तकनीकी टीम के साथ मिलकर एक मनोरंजक फिल्म बनाकर साबित किया है कि हिंदी सिनेमा सिर्फ लफ्फाजी, स्पेशल इफेक्ट्स और शोर में तब्दील हो चुका नहीं है, इसमें अब भी बहुत कुछ है।

Do Aur Do Pyaar Review: आना ही पड़ा सजना..

बार में बैठे चालीस के अरते परते के पति-पत्नी खुलकर हंसते, मजाक करते और अपनी पसंद के एक पुराने गीत पर नाचते हैं, तो विवाह में स्थिरता ही सबसे बड़ी बाधा है। किसी भी वैवाहिक रिश्ते का मूल्य खुलकर बतियाना और झगड़ा करना है। फिल्म यह भी बताती है कि पति अपनी पत्नी का प्रेम प्रसंग जानता है तो उसकी प्रतिक्रिया क्या होती है? क्या होता है जब एक पत्नी को अपने पति के जीवन में एक औरत होने का पता चलता है?

पत्नी का प्रेमी उसके घर तक पहुंचते हुए भी अपने आप को संयम में रखता है। पति की प्रेमिका अपने घर परिवार को अपनी उपस्थिति का एहसास दिलाने के अवसर खोजती रहती है। वह भी अपने प्रेमी की पत्नी को बददुआएं देती रहती है। फिल्म “दो और दो प्यार” का असली अर्थ पुरुष और स्त्री के प्रेम की इन छोटी-छोटी लेकिन महत्वपूर्ण घटनाओं में छुपा है।

विद्या और प्रतीक की अव्वल नंबर अदाकारी

विद्या बालन और प्रतीक गांधी यहां विवाहित हैं। दोनों ने काव्या गणेशन और ओनिर बनर्जी के किरदार इतनी कुशलता से जिये हैं कि देखकर लगता है कि यहां दो अभिनेता हैं। विद्या बालन ने बहुत समय बाद खुद को एक किरदार में भुला दिया है. वह चाहे काव्या के माथे पर बिंदी न देख मां के टोकने पर असहज हो जाए या समुद्र तट पर अपने पिता के साथ बिखरती संभलती काव्या का स्पर्श पाकर सहज हो जाए। आखिरकार, प्रतीक गांधी की कला भी सफल हो गई। वह अपने वर्ग के सर्वश्रेष्ठ कलाकार हैं, बस उन्हें सही निर्देशक मिलना चाहिए।

एक कामकाजी आदमी पत्नी और प्रेमिका के बीच खिंची डोरी पर चलते-चलते पसीना-पसीना हो चुका है, लेकिन वह दोनों को छोड़ना नहीं चाहता, बार-बार नाक पर खिसक आने वाले चश्मे को संभालता है। प्रतीक ने परदे पर जीकर इस तरह के रिश्तों में खर्च होने वाली ऊर्जा और दोनों में से किसी एक को चुनने की चुनौती दिखाई है।

सेंथिल और इलियाना की मजबूत

अमेरिकी सिनेमा में बहुत चर्चित नाम रहे सेंथिल राममूर्ति ने फोटोग्राफर की भूमिका अच्छी तरह से निभाई है। फिल्म में उनकी हिंदी संवाद अदायगी हास्य भी लाती है, लेकिन कहानी का असली हास्य वह है जब काव्या के बाबा मर जाता है और वह ओनिर के साथ ऊटी पहुंचती है। लंबे समय बाद बड़े परदे पर इलियाना डिक्रूज को देखना अच्छा लगता है। नाटक में जीवन और नाटक में जीवन की तलाश करने वाली नोरा का किरदार बहुआयामी है।

फिल्म में इस किरदार की अनेक परतें भी खोली जा सकती थीं, लेकिन समय की कमी ने शायद उनका सौतिया डाह कहानी में उभरने से बचाया। दोनों ने अपने रोल बेहतरीन ढंग से निभाए हैं। बस, एक सुखद फिल्म की चुनौती पर कसी जाती फिल्म “दो और दो प्यार” क्लाइमेक्स पर आकर कुछ कमजोर हो जाती है।

Do Aur Do Pyaar Review: जब एक अफेयर के बाद प्रेमी से फिर प्यार होता है, एक अजीब प्रेम कहानी

Film Review : Do Aur Do Pyar | Vidya Balan | Pratik Gandhi | Ileana D’Cruz | Sendhil Ramamurthy |