Imam Husain:

Imam Husain: हिंदू अजादारों के घर भी गूंज रहे थे या हुसैन की सदाएं, जो हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल बन गईं।

Uttar Pradesh

Imam Husain: लखनऊ में भी कई हिंदू अजादार इमाम हुसैन की शहादत को श्रद्धांजलि देते हैं। मजलिसों में वे मातम करके इमाम को पुरस्कार देते हैं।

हमारे घर में कोई मर जाए तो मातम है, बारह महीने तीस दिन मुहर्रम है। ये रिंद लखनवी का शेर हमारे लखनऊ के लिए पूरी तरह से अनुकूल है। राजधानी में मुसलमानों के अलावा कई हिंदू अजादार भी इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं। मजलिसों में वे मातम करके इमाम को पुरस्कार देते हैं। मोहम्मद इरफान ने हिंदू अजादारों से भी बात की, जो एकता और भाईचारे की मिसाल हैं।

Imam Husain: इमाम की शहादत का शोक मनाया जाता है

चंद्र किशोर राठौर उर्फ चुन्ना भाई ने करीब 35 साल पहले मंसूर नगर में अपने तीन कमरों के घर के एक हिस्से में इमामबाड़ा बनाया था। तारादेवी की माँ नाराज हुईं, लेकिन बाद में मान गईं। पत्नी संगीता राठौर ने शादी के बाद कभी विरोध नहीं किया। बताया कि वे भी हजरत कासिम और इमाम हुसैन की जियारत कर चुके हैं। मुहर्रम में चुन्ना भाई मजलिस में जाते हैं और इमाम की शहादत पर मातम करते हैं। उनका कहना था कि घर का इमामबाड़ा हर साल सजा जाता है। पड़ोस के आठ हिंदू परिवार मुहर्रम में इमामबाड़े में अपने मन्नती ताजिये रखते हैं। हिंदू महिलाएं मुहर्रम की नौ तारीख, यानी शब-ए-आशूर में रात भर नौहाख्वानी करती हैं।

Imam Husain: 25 साल से कायम है घर में इमामबाड़ा

1984 में सैन्य सेवा से रिटायर हुए रमेश चंद्र ने नरही में अपने घर पर करीब 25 साल पहले इमामबाड़ा बनाया था। वे कहते हैं कि नवाब साहब, जिन्हें वे “बाबा भाई” कहते थे, उनका सपना था कि मैं घर पर इमामबाड़ा सजाऊँगा। मेरे दादा पहले से ही हजरत इमाम हुसैन पर आस्था रखते थे। घर में इमामबाड़ा बनाने के लिए बाबा भाई ने एक ताजिया लाकर दी। इमामबाड़ा पूरे साल सजा देता है।

मुहर्रम में तबर्रुक और मजलिस भी करते हैं। हमारे इमामबाड़े में करीब 35 हिंदू परिवार मन्नती ताजिए रखते हैं, उन्होंने कहा। सभी परिवार पूरी रात शब-ए-आशूर को नौहाख्वानी करते हैं और मातम करके इमाम हुसैन को पुरस्कार देते हैं।

Imam Husain: गायिका सुनीता झिंगन की पहचान हुसैनी ब्राह्मण है

ख्याल, दादरा, ठुमरी और गजल की प्रसिद्ध गायिका सुनीता झिंगरन को हुसैनी ब्राह्मण कहा जाता है। वे कहती हैं कि वे करीब दो दशक से अहलेबैत की सेवा कर रहे हैं। मर्सिया पढ़ते हुए उनके कई वीडियो सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं। जब वे मुहर्रम में मजलिसों में मर्सिया पढ़ती थीं तो सुनने वालों की आंखें रोती थीं। उन्हें अपने स्टूडियो में अलम सजा दी गई थी। मैं पिछले एक या दो साल से मर्सिया पढ़ने नहीं निकल पाया हूँ।

Imam Husain: हिंदू अजादारों के घर भी गूंज रहे थे या हुसैन की सदाएं, जो हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल बन गईं।

मजहब की सरहदों में कैद नहीं इमाम हुसैन की कुर्बानी, हिन्दू अजादारों के घरों में सजे हैं इमामबाड़े


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